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________________ आत्मा उसी भव में मोक्ष प्राप्त करेंगे। इसे काललब्धि कहते हैं। इस काल के परिणाम ८४ हजार वर्ष के बाद परिपक्व होता है। जिसकाल में अनेक जीव केवलज्ञान और मोक्ष को प्राप्त करते है उसी काल में सभी जीव मोक्ष में जाते हैं ऐसा नहीं होता है। काल परिपक्वता के बीना चौथे आरे के काल में भी अनेकात्मा दूगर्ति को प्राप्त होते है और पंचमकाल में भी अनेक जीव मार्ग पाकर सदगति के अधिकारी बनते है। इस पंचमकाल में भी जिनेश्वर प्ररुपीत शासन की प्राप्ति जिनागम की प्राप्ति जिनप्रतिमादिका आलंबन यह सब काललब्धि की परिपक्वता हैं।' सभी द्रव्यों में परिणमन की शक्ति स्वाभाविक होती है। अन्य द्रव्य निमित्तमात्र है। सभी द्रव्य स्वयं के परिणमन के उपादान कारण है। अन्य बाहिय द्रव्य निमित्तमात्र है। जीव जब स्वयं के स्वभाव की ओर पुरुषार्थ करता है तब स्वकाल रुप निर्मल पर्याय प्रगट होती है। काललब्धि को क्षयोपसम लब्धि भी कहते है। अषाढाभूति पतित होने के बाद गुरु के पास आते है। स्वयं के विकल्प दर्शाते है। गुरु उन्हें समझाते है। अषाढभूति के आँखों में आँसु आ जाते हैं क्योंकि उनकी पतित होने की इच्छा नहीं थी। गुरु से कहते है गुरुवर ! आपका कथन त्रिकाल सत्य है फिर भी मेरे परिणाम सयंम में टिकते नहीं हैं। गुरु मौन रहे। जाते हुए अषाढाभूति गुरुदेव को पूंठ किए बिना गुरु के प्रति पूर्ण आदर और श्रद्धा के साथ जाते है। परिणाम यह हुआ कि काल के प्रभाव में पतित तो होते है परंतु ५६३ राजकुमारों को बोधान्वित कर वापस गुरुदेव के पास आते है। वे चारित्र भ्रष्ट थे पर दर्शनभ्रष्ट नहीं थे। ज्ञानी पुरुषों के मुखारविंद से उपदेश श्रवण करना देशनालब्धि है। पहले देशना सुनी हो वह स्मृति में रह जाए वर्तमान में वह स्मृति परिणाम प्रगट कर शुभ संस्कारों में कारणभूत बन जाए। उसे पूर्वभूतदेशनालब्धि कहते है। ___ करणलब्धि अर्थात् सूक्ष्म परिणाम। जीव जब जीवतत्त्व के विचार में सल्लीन रहता है तब करणलब्धि के परिणाम होते है। स्वतत्त्व के विचार में परिणाम इतने सूक्ष्म हो जाते हैं उन परिणामों के माध्यम से सम्यक दर्शन प्राप्त हो जाता है। करणलब्धि के अवलंबन से रागद्वेष की ग्रंथिको भेदकर मिथ्यात्त्व के उपर विजय प्राप्त की जा सकती है। इसतरह के आत्मा के परिणामों को करणलब्धि कहा जाता है। यथा प्रवृत्तिकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण ऐसे करणलब्धि के तीन प्रकार हैं। केवलज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति इसका काल में नहीं है पर सम्यक दर्शनादिइसकाल में प्राप्त हो सकते हैं। चार लब्धि प्राप्त हो जाने के बाद जब अंतर्मुहर्त में सम्यक दर्शन प्राप्त होना होता है तब पाँचवी लब्धि के परिणाम अवश्य हो जाते हैं। ऐसा पाँचवी लब्धि का निमित्त नैमित्तिक संबंध हैं। चार लब्धि जीव को अनेक बार प्राप्त होती है परंतु पाँचवी लब्धि न पा सकने से वह वापस लौट जाता है। चार लब्धि भव्य-अभव्य सबको प्राप्त होती है। पाँचवी लब्धि भव्य कोही प्राप्त होती है। स्थूलिभद्र ने रुपकोशा को कहा था आज और कल का भरोसा न करो जो करना हैं अभी करो। जीवन आज या कल में पूर्ण हो जाएगा। कामनाओं को जीतने के लिए समय को जानो और स्वयं को पहचानो। जीवन की इस विजय को पाने के लिए किसी को पराजित करने की आवश्यकता नहीं है। केवलमात्र स्वयं को जीत लो आत्मा को जीत लो। जो जीतता हैं वह जिनेंद्र कहलाता है। अनेक वर्ष जीया जाता है पर किसी विशेष क्षण में ही जीता जाता हैं। . भगवान महावीर ने कहा है स्वयं, स्वयं से ही युद्ध करो बाहर युद्ध क्यों करते हो? अप्पणा चेव जुज्जाहि, किंते जुज्जइ बज्जओ। तेरे ही भीतर आत्मा के अनेक कर्म शत्रु है। उसके साथ युद्ध कर जुद्धारिहं 213
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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