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________________ सत्तावाला, विषयोंवाला, कषायोंवाला, हिंसक, हीनचारित्रवाला आदि होनेपर भी आंतरिक परिवर्तन के द्वारा अचानक रूपांतरण हो जाता है और वे मोहनीय को सर्वथा छिन्नभिन्न कर कैवल्य को प्राप्त कर लेते हैं । घातक अर्जुनमाली को सुदर्शन श्रावक ने क्या उपदेश दिया, क्या आचरण सिखाया? भीतर के परिवर्तन के अतिरिक्त पूर्ण ज्ञान कैसे संभव हो सकता है? छोटी वय में दीक्षित अतिमुक्त कुमारने साक्षीभाव में सहजता से केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। जिस में नाव तिराई उस पानी के जीव भी मेरे जैसे ही है। मैं भगवान जैसा हूँ। ऐसा सोचते सोचते वे सर्व उपाधी मुक्त होकर कैवल्य को प्राप्त हो गए। ज्ञातादृष्टाभाव में आनेपर जीव की भीतर की परिस्थिति में बडा परिवर्तन होता है । एकबार भगवान ऋषभदेव के समवसरण में एक सुनार ने प्रश्न पूछा कि आप की इस धर्म सभा में निकट समय में केवलज्ञान पानेवाला कौन है? भगवान ऋषभदेव ने भरतचक्रवर्ती की ओर ईशारा किया। सुनार ने इस घटना को तीर्थंकर के पुत्र के मोह का कारण समझकर उसकी आलोचना की । जनजन के साथ उसने चर्चा की। छह खंड के अधिपति, विपुलभोगसामग्री के उपभोक्ता, ६४००० रानियों के स्वामी कैसे मुक्त हो सकते है? आलोचना के ये स्वर भरतचक्रवर्ती तक पहुंचे। सुनार को तुरंत बुलाया गया और कहा यह तेल का भरा कटोरा लेलो और राजधानी के हर चौराहे पर घूमकर आओ। तुम्हारे पीछे नंगी तलवार लिए सैनिक चलेंगें। अगर एक भी तेल की बूंद छलक कर गिर गई तो तुम्हारी गर्दन उडा देंगे। प्रत्येक चौराहे पर विविध गीतवाद्यनृत्य नाटक की व्यवस्था की गई थी। आदेश का पालन हुआ। सुनार सब ओर घूमकर वापस लौटा। महाराज ने पूछा, कैसा रहा राजधानी में चल रहे आमोदप्रमोद और रंगराग में मजा आया? सुनार ने कहा महाराज ! मेरा पूरा ध्यान तेल के कटोरेपर था। उसतरफ मेरा ध्यान भी कैसे जा सकता हैं ? भरतमहाराजाने परमात्मा की बात को सत्य साबीत करते हुए कहा, ऐसा ही हाल मेरा हैं। चक्रवर्तीत्त्व, भोगोपभोग की सामग्री, ६४००० रानियाँ यह सब चौराहे के आमोदप्रमोद की तरह है। आत्मा तेल के कटोरे की तरह है। पर पदार्थ में रमणता खतरा है। साक्षीभाव में रहनेपर भीतर कोई उपाधि नहीं रहती है। आप सब जानते हो एक दिन भगवान का कथन सत्य सिद्ध हुआ और भरतचक्रवर्ती केवलज्ञान के धारक हो गए। केवलज्ञान एक ही होता हैं और उसे पाने के कई प्रकार होते हैं । प्राप्ति के प्रकार ही केवलियों के प्रकार हो जाने के कारण नव प्रकार के केवली के प्रकार शास्त्र में बताए हैं। : १) सयोगी केवली २) अयोगी केवली ३) अंतकृत केवली : : मनवचन काया से युक्त केवली को सयोगी या भवस्थकेवली कहा जाता है। मनवचन काया से रहित केवली को अयोगी या सिद्धकेवली कहा जाता है । केवलज्ञान होने के बाद जो तुरंत सर्व कर्म का अंत करते हैं उन्हें अंतकृत केवली कहते हैं। जिस अंतिम क्रिया के बाद फिर कभी कोई अन्य क्रिया नहीं करनी पडती ऐसी मोक्षप्राप्ति की क्रिया अंतः क्रिया होती है । अंतगडसूत्र में ऐसे ९० महान आत्माओं का वर्णन है। ४) तीर्थंकर केवली ५) प्रत्येकबुद्ध केवली : तीर्थंकर पदवी को भोगते हुए चतुर्विधधर्म की स्थापना करते हैं उन्हें तीर्थंकर केवल कहा जाता है। किसी एक वस्तु को देखकर उसपर अनुप्रेक्षण करके प्रतिबुद्ध होकर दीक्षित 208
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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