SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यात्रा को आगे खेंचते हैं। समय बीतने पर समस्याएँ जब बढ जाती हैं या यात्रा बोझिल और भारी भरकम हो जाती हैं तब यात्रा का वहन उपाध्याय के हाथों में आता हैं। स्वाध्याय और शिक्षा दीक्षा द्वारा यात्रा को सहज बनाने की कला उपाध्याय के हाथों में होती हैं। बोझिल यात्रा को उपाध्याय सहज तो कर देते हैं परंतु कभी कभी भार तकलीफ देता ही हैं। ऐसे में अनुशासन लेकर आते हैं आचार्य। अनुशासन समाचारी आदि अनेक अनुष्ठानों के द्वारा वे पहले तो बोझा हलका करा देते हैं। इससे यात्रा काफी सुलभ हो जाती हैं। परंतु निर्वाण स्थितितक पहुंचने के लिए परमपुरुष की खोज जारी रहती हैं। यात्रियों की योग्यता और पारिणामिकता देखते हुए अरिहंत परमात्मा गाडी की बागडोर अपने हाथ में लेकर धीरे धीरे यात्रा को गतिमान करते हुए प्रगति के पथ पर आगे बढाते हैं। इन भावों को व्यक्त करती हुई एक गुजराती गीत की कडी हमें यहाँपर सक्रिय करती हैं। हरि हळवे हळवे हंकारे मारु गाडु भरेल भारे। हो मारु गाडु भरेल भारे॥ जब तक हमें सिद्धत्त्व प्राप्त न हो तब तक अरिहंत परमात्मा हमारी इस अध्यात्म यात्रा में यात्रा का वहन करते हैं। ___धर्म सारथि को समझने और पहचनाने के लिए हमें स्वयं का सारथि के साथ संबंध जोडना होगा। इस संबंध योजना में हमें पाँच प्रणाली को अजमाना पडेगा। १. जिस रथ को प्रभु चला रहे हैं उसमें आरुढ होने के लिए हम कितने तत्पर हैं तैयार हैं। २. कहाँपर खडे रहकर रथ की प्रतिक्षा कर रहे हो? जैसे रेल पकडने के लिए रेल्वे स्टेशनपर और बस पकडने के लिए बसस्टॉप पर जाना पडता हैं। कोई भी बस या ट्रेन प्रवासी को लेने घर पर नहीं आती। हमें भी अपना साधना का स्थान नक्की कर लेना चाहिए। ३. प्रतिप्रवास के साधनों की समयसूचकता निर्धारित होती है। उसी तरह हमें भी समयसूचकता के साथ बरतना चाहिए। कहीं ऐसा न हो हमारे आलस प्रमाद और उपेक्षा से अनभिज्ञ हो और स्टँडपर पहुंचने के पहले ही गाडी चल चुकी हो। ४. जहाँपर हमें जाना हैं क्या उसकी योग्यता अर्हता और सामर्थ्य के लिए हम तैयार हैं? कही ऐसा तो नहीं हैं कि हमें अपने गंतव्यका ही पता न हो। ५. यदि हम रथपर सवार हो चुके हैं तो हमें सारथीपर पुरा भरोसा हैं न ? हम अपनी यात्रा का पूरा आनंद ले रहे हैं या नहीं? साधारण यात्रा में कुछ लोग अपनी सीटपर आरुढ होकर सो जाते हैं। जब उनका निश्चित स्थान आता हैं तब आसपास के लोग उन्हें जगाकर स्टेशन आने जाने की सूचना देते हैं। इसतरह इन पाँच बातोंपर चिंतन करने से हमें अपने और सारथी के बारे में पहचान होगी और दोनों के बीच में संबंध भी स्थापित होगा। . आज हम पूर्ण जागृति पूर्वक इस अध्यात्मयात्रा में सामील होकर शासन की संयोजना में शासनपती सारथी की संगत में अपनेआप को जोड लेते हैं। उपरोक्त पांचों बातों का ध्यान रखते हुए अनुभूतिपरक यात्रा का आनंद लेते हैं। सारथि की बात आती हैं तब हमें हालिक किसान याद आ जाता हैं। एकबार भगवान महावीर ने अंतेवासी गौतमस्वामी को एक किसान को प्रतिबोधित करने के लिए भेजे थे। भगवान का मेसेज लेकर वहाँ पहुंच गए। किसान हल चला रहा था। कुछ न कहते हुए सिर्फ टिकटिकी लगाकर पृथ्वी, हल और किसान को देखते रहे। बस देखते ही रहे। किसान का भी ध्यान गौतमस्वामी की ओर गया। कभी न देखा हो वैसा अद्भुत रुप वात्सल्य झरती सौम्य मुद्रा जैसे कोई अति परिचीत भवांतर से संबंधित हितचिंतक भगवत् स्वरुप मुनिपुंगव को देखकर 189
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy