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________________ परमात्मा धर्म की देशना देते हैं, नेतृत्त्व करते है उसके साथ साथ उनकी उदीरणा करते हैं। हम सुनते हैं तो हमारे कर्म की निर्जरा होती है। धर्म प्रभु का और कर्म की देशना हमारी ऐसा जिनेश्वर के सिवा और किस के साथ हो सकता है। इसीकारण परमात्मा को धम्मनायगाणं कहा हैं। एकबार श्रावस्ती नगरी में परमात्मा महावीर पधारे। तब नगरी के धर्मिष्ठ, धनाढ्य और धैर्यवान शंख-पोखली आदि श्रावक प्रभु के दर्शनार्थ पधारे। दूसरे दिन पाक्षिक अमावस्यापर पौषधादि अनुष्ठान करना चाहिए ऐसा प्रभु का संदेश सुनकर सभी मित्रोंने पौषध करने का निर्णय किया। शंख श्रावक ने पौषध से पूर्व अच्छे भोजन के लिए सबको एक साथ भोजन का निमंत्रण दिया और कहा अच्छा आहार कर के हम सब कल पौषध करके धम्म जागरणकर अपना समय सफल करेंगे। शंख की बात सबको जच गई। भोजन तैयार हुआ। सब एकत्रित होकर शंख की प्रतीक्षा करते थे। पौषध के लिए आतुर शंख के मन में भगवान महावीर का पुष्टिकरणं पौषधं का चिंतन चल रहा था। पौषध आत्मपुष्टि के लिए होता हैं और भोजन देहपुष्टि के लिए होता है। आत्मपुष्टि के लिए देहपुष्टि को पुष्ट करना या उत्तेजित करना और आरंभ-समारंभ पूर्वक भोजन करना अनुचित हैं। ऐसा विचार कर पत्नी को सूचना देकर वे पौषधशाला में चले गए। शंख के भोजन में नहीं पहुंचनेपर पोखली श्रावक उनके घर पहुंचे। पत्नी उत्पला से शंख के बारे में पूछा। सत्य बात का पता लगनेपर उसके मन में शंख के प्रति उलाहना के भाव प्रगट हुए। प्रातःकाल शंख जब प्रभु के समवसरण में पहुंचे अचानक वहाँ पोखली भी पहुंचा। सभी मित्रों ने मिलकर भगवान से कहा प्रभु ! शंखने हमारे साथ धोखा किया है। अत: वह निंदनीय हैं। प्रभु ने कहा वत्स ! शंख निंदनीय नहीं अनुमोदनीय हैं। उसने प्रमाद निद्रा का त्याग कर रात्रि में धर्म जागरणा की हैं। सुदृष्ट जागरिका नाम का जागरण किया है। यह जागरण कपटमयी नहीं धर्ममय था। परमात्मा का कथन सुनकर शंख श्रावक से सभी मित्रों ने क्षमा याचना की तब गौतम प्रभु ने पूछा, भगवन ! सुदृष्ट जागारिका किसे कहते हैं? प्रभु ने कहा गौतम ! जागरिका तीन प्रकार की होती है बुद्ध जागरिका, अबुद्ध जागरिका और सुदृष्ट जागरिका। केवलज्ञानी भगवंतों की बुद्ध जागरिका (अप्रमत्तता) कहलाती है। शेष असर्वज्ञ मुनियों की अप्रमत्तता अबुद्ध जागरिका तथा तत्त्वज्ञ श्रावक का धर्मचिंतन सुदृष्ट (सुदर्शन) होने से सुदृष्ट जागरिका कहलाती है।गौतम स्वामी ने प्रभु से आगे पूछा, भगवान ! शंख आपके पास साधु बनेगा? तब प्रभु ने कहा, नहीं बनेगा। यहाँ से प्रथम स्वर्ग में जाएगा और वहां से महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर मोक्ष जाएगा। यह है प्रभु के नेतृत्त्व का प्रभाव। आपने कभी अनुभव किया होगा कि मेले आदि में माँ बच्चे का हाथ पकडकर घुमती है। तब बच्चा माँ की उँगली नहीं पकडता हैं पर माँ बच्चे की पकडती हैं। पकड जोरदार होते हुए भी अधिक गर्दी के समय में खींच कर भी बच्चे को आगे लेती हैं। इसे कहते हैं नेतृत्त्व। नेतागीरीवाला नेतृत्त्व नहीं हैं यह। यह हैं जिम्मेदारी पूर्वक आगे बढाना। नि नयति अर्थात् जिम्मेवारी पूर्वक ले जाना। गुजराती में दोरना कहते हैं। गुजराती में कहावत भी हैं, दिकरी ने गाय दोरे त्यां जाय। जैसे गाय और बेटी स्नेह और संरक्षण के साथ दोरी जाती है वैसे ही समर्पित साधक को मोक्षतक परमात्मा ले जाते हैं। 185
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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