SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यवहार राशी में आ जानेपर अचिंत्य सहायभूत होते हुए भी इस संबंध में हम अज्ञात रहते है। जैसे गर्भस्थ शिशु की माँ बच्चे के धारण करने में और पालन पोषण में सहायभूत होते हुए भी, जीवन विकास में माँ का पूर्ण योगदान होते हुए भी बच्चा इस योजना से अनजान और अपरिचित हैं। इसीतरह भवांतर से हमपर होनेवाले देवाधिदेव के उपकारों से हम अनजान हैं। इस योजना में प्रवेश करते ही प्रथम धर्म की उपलब्धि होती हैं। धर्म का परिणाम गुरु की प्राप्ति है। गुरु की उपासना का परिणाम देवाधिदेव की प्राप्ति है। क्रमश: धर्म हमें गुरु के साथ जोड देता है। गुरु कभी सिर्फ स्वयं के साथ बाँध के नहीं रखते है। वे निरंतर हमें परमात्मा के साथ जोडने के लिए प्रयत्नशील रहते है। पदार्थ में परिवर्तन करते समय पदार्थ सहायभूत होते हैं जैसे दूध में जावन डालनेपर दूध दही में परिणमित हो जाता है। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए पदार्थ की कोई चेष्टा कामयाब नहीं होती है। तो परिणमन कैसे होगा ऐसा प्रश्न हमें हो सकता है। तस्सण्णे इस प्रश्न का उत्तर हैं। चेतना ही चेतना में परिवर्तन कर परमचेतना के साथ जोड सकती है। इस प्रक्रिया में सहायभूत हैं धर्म का पाँचवा प्रकार तन्निसेवणे हैं। इसमें हमारा धर्म के साथ साथ रहना, धर्म में रहना, धर्ममय रहना आवश्यक है। ऐसा धर्म शुद्ध होता है और शुद्ध करता है। धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है। जिनेश्वर द्वारा देशित हैं उपदेशित हैं। धर्म के उपदेशक को धम्म देसयाणं कहते हैं। अब धर्म के महानदान का स्वीकार कर धर्मदाता हमारे सामने धर्म देशक के रुप में प्रगट होंगे। तब तक हम धर्मचर्या में चरण करे। नमो धम्मदयाणं की स्वरांजलि के साथ धम्मदेसयाणं की प्रतीक्षा करते हैं। नमोत्युणं धम्मदयाणं... नमोत्थुणं धम्मदयाणं... नमोत्थुणं धम्मदयाणं... 175
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy