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________________ नमोत्थुणं - जीवदयाणं जीव स्वयं अनंत हैं जीवन अनंत यात्रा हैं। जीव से तात्पर्य हैं चेतना, चैतन्य, उत्साह, जागृति आदि देह में जीव की अभिव्यक्ति जन्म हैं। देह में जीव की अनुभुति दीक्षा हैं। पुद्गल में जीव प्रगट करे उसेमा कहते हैं। जीव में जीवन प्रगट करे उसे परमात्मा कहते हैं। देह में जीव की अभिव्यक्ति करावे वह मा हैं। देह में जीवन की अनुभूति करावे वे परमात्मा हैं। जगत् वन हैं - वन में जीव आता हैं तब जीवन बनता हैं। जीवन में उपासना आती हैं तब जीवन उपवन बनता हैं। उपवन में मधुरता आती हैं तब वह मधुवन बनता हैं। मधुवन में जब तपस्या आती हैं तब वह तपोवन बनता हैं। हमारा जीवन हमारा सहज प्रयास हैं। जीवन में परमात्माकाअनग्रह अनप्रास हैं। जीव में जीवन प्रगट होता हैं तब हमारा व्यक्तित्त्व व्यक्त होता हैं और जीवन में जीवत्त्व प्रगट होता हैं तब हमारा अस्तित्त्वव्यक्त होता हैं। जीव को जब तक स्वयं की स्थिति का बोध नहीं होता हैं तब तक वह परम की स्थिति का बोध नहीं पा सकता हैं। स्वयं की स्थिति का बोध पाने के लिए उसे स्वयं की वृत्ति को समझना होता हैं। वृत्ति के तीन प्रकार हैं - स्ववृत्ति, परवृत्ति और पदार्थवृत्ति। परवृत्ति और पदार्थवृत्ति में अंतर स्पष्ट होना कठिन हैं। वस्तुत: वृत्ति के स्व और पर दो प्रकार हैं। पर दो विभाग में बंटा हुआ हैं व्यक्ति और वस्तु। परवृत्ति में जीव दो तरह से व्यामोहित होता हैं अन्यजीव और अन्य पदार्थ। यह भेदरेखा पहचानी जाए, समझी जाए तो स्ववृत्ति में आना सरल हो जाता हैं। ज्ञानी पुरुषोंने इस तत्त्व को समझाने के लिए उपयोग और उपासना ऐसी दो प्रक्रियाए बतायी हैं। पदार्थ का उपयोग करो और जीव की उपासना करो। हमारे लिए उपासना अवश्य महत्त्वपूर्ण हैं परंतु केवल सद्गुरु और परमात्मा की उपासना को ही महत्त्व देते हैं। प्रत्येक जीव में सिद्धत्त्व के दर्शन करने चाहिएं। आत्मसिद्धि में कहा हैं - सर्व जीव छे सिद्धसम, जे समझे ते थाय। सद्गुरु आज्ञा जिनदशा, निमित्तकारण माय ॥ सर्व जीवों में सिद्धत्त्व का स्वीकार करना हैं, समझना हैं, मानना हैं। हम इस कथन से बिल्कुल विरुद्ध चल रहे हैं। हम जीव का उपयोग करते हैं और जड की उपासना करते हैं। जड और चेतन के भेद को समझे बिना जीवत्त्व को प्राप्त करना अशक्य हैं। मकान गिरता हैं तो मानव रोता हैं पर मानव गिरता हैं तब मकान नहीं रोता हैं। केवल मात्र इस एक ही कथन में जड और चेतन का भेद पाया जाता हैं। 159
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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