SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्कार की चाह नहीं रहती है। आगे पीछे का कोई आयोजन नहीं होता है। केवल मात्र संकट से पार उतरने की व्यवस्था मात्र होती है। शरण में हमारे और परम के अस्तित्त्व का साक्षात्कार होता है। साक्षीभाव का स्वीकार होता है। तू ही तू ही का अंतरनाद होता है। मेरे लिए परम विशेष है और परम के लिए मैं भी संपूर्ण विशेष हूँ। दोनों अस्तित्त्व का लयबद्ध संयोग शरणभाव हैं। __आलंबन का अर्थ तकलीफ में सहयोग देना हैं। सहयोग देकर चले जाने के बाद उनके साथ हमारा कुछ भी संबंध नहीं होता हैं। मानलीजिए सफर में आपकी गाडी कही अटक गई। किसी ने गाडी को धक्का लगाया ठीक होकर गाडी चल पडी। धक्का लगानेवाले को आप क्या करोगे? आभार ही तो मानेंगे ओर क्या करोगे? आलंबन में इससे अधिक कुछ होता भी नहीं। शरण में ऐसा नहीं होता। एकबार बंध गए तो भवांतर में भी साथ रहने के वादे हो जाते हैं। जब तक मंजिलतक न पहुंच पाए तब तक पूरे मार्ग में उन्हें हमें साथ देना पडेगा। इसीलिए मग्गदयाणं के साथ सरणदयाणं हैं। हे परमात्मा ! तू मार्ग देकर चला जाएगा। ऐसा नहीं होगा। मुझे शरण में लेना होगा। साथ देना पडेगा। मेरा सत्त्वखोलकर मुझमें स्वयं की बोधि प्रगट करनी होगी। शरण प्राप्त करने से पूर्व स्तवन होता है और स्तवन से पूर्व वंदन होता है। यह एक ऐसी यात्रा का प्रारंभ हैं जो नमन से शुरु होकर स्तवन से गुजरकर शरण में समा जाती हैं। क्रम की लयबद्धता देखे पहले नवकार मंत्र फिर लोगस्स और फिर नमोत्थुणं में सरणदयाणं के रुप में प्रगट होते हैं। नमो अर्थात् चेतना की उपस्थिति, स्तवन अर्थात् परमचेतना की साक्षी और शरण अर्थात् अस्तित्त्व का स्वीकार। क्रम की लयबद्धता भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। नमोत्थुणं के प्रत्येकपद अपनी एक क्रमिक लयबद्धता में बंधे हुए हैं। अभय दयाणं से इस क्रम का प्रारंभ होता हैं और बोहिदयाणं में लयबद्ध होता हुआ धम्मदयाणं में समाकर अपना एक नया पंचत्त्व बना लेता हैं। इसे हम उदाहरण के द्वारा देखते हैं। एकबार एक धनिकशेठ अपने साथ अपार धन संपत्ति लेकर घने जंगल के पथ से पसार हो रहे थे। मार्ग में उसे अकेला देखकर एक लूटेरे ने पकड लिया। आँखोंपर पट्टि बाँधकर मालसामान ले लिया। किसी पेडपर उल्टे लटकाकर भग गया। घने जंगल में उसे कौन बचाए? हलकी सी भी आहट सुनकर शेठ बचाओ बचाओ की आवाज लगाता था। ___ अचानक एक सज्जन वहाँ से निकला। उसने देखा किसी लूटारु ने इसे लूटकर पेडपर बाँधा हैं। मुझे उसे बचाना चाहिए। वह शेठ के पास जाता हैं। शेठ कोई पास जानकर घबराकर काँपने लगा। पूछता है आप कौन हो ? शेठ को लगा कही कोई लूटेरा मुझे मारने तो नहीं आया? उसने कहा, आप कौन हो? मारनेवाले या बचानेवाले? आगंतुक ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा मैं तुम्हें बंधन से मुक्त करने आया हूँ घबराओ मत। सर्व प्रथम तुम भय से मुक्त हो जाओ। उसे निर्भिक कर शेठ ने उसके आँखपर की पट्टी हटाइ, बंधन से मुक्त किया। पेडपर से नीचे उतारकर बोले बोल तुझे कहाँ जाना हैं ? शेठ ने गाँव का नाम बताया तब उसे मार्ग बताया। शेठ ने उस व्यक्ति से कहा आपने मुझे रास्ता तो बता दिया पर मैं भयमुक्त नहीं हूँ। अत: अकेला चलने का सामर्थ्य मुझमें नहीं हैं। आपने 154
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy