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________________ भूतकाल में मार्ग बताकर, वर्तमान में मार्गपर चलाकर और भविष्य के मार्ग की प्ररुपणा कर परमात्माने हमपर कालिक उपकार किया हैं। स्वयं मार्ग देखते हैं फिर उसपर चलते हैं उसके बाद मार्ग दिखाते हैं इतना ही नहीं, मार्गपर चलाते हैं। हमें मार्ग का त्यागकर विषम मार्गपर नहीं चलना चाहिए। मार्गपर निरंतर चलते रहना चाहिए। जिनेश्वर या उनके निर्देशित मार्गपर शंका करना अर्थात् मार्ग में ही घर बना लेना हैं। संसयं खलु जो कुणई, सो मग्गे कुणई घरं - मार्ग या मार्ग दाता के प्रति संशय करना मार्ग में ही घर बनाना है ऐसा व्यक्ति कभी मंजिल नहीं पा सकता। मार्ग के साथ तीन बातें जुडी हुई हैं। मार्ग देखा जाता है, जाना जाता है और चला जाता है। आनंदघनजी ने इसीलिए कहा हैं - चरम नयनकरि मारग जोवता....। मार्ग देखने की भी विधि होती हैं। विधि अर्थात् कोई प्रक्रिया नहीं परंतु महापुरुषों की दृष्टि से जुडकर भीतर की दृष्टि का खोल देना। इस दृष्टि को आनंदघन आदि महापुरुषों ने दिव्यदृष्टि कहा है। शास्त्र में व्यवहार में उपयुक्त चार प्रकार के मार्ग कहे हैं - १. पथमार्ग, २. जलमार्ग, ३. आकाशमार्गऔर ४. अनुग्रह मार्ग. पथमार्ग के दो प्रकार हैं - कंटकपंथ और महामार्ग या राजमार्ग। पथ का स्वरुप बताते हुए कहा है अवसोहिय कण्टगापहं। कंटकमार्गपर पूर्ण सावधानी से चलना चाहिए। जलमार्ग के बारे में संसार को सागर की उपमा देते हुए कहा हैं - संसार सागर घोरंतरकने लहुँलहुँ। विशाल समुद्र की तरह संसार भी जटिल है पर इसे धीरे धीरे धेर्यता पूर्वक पार करना चाहिए। आकाशमार्ग के बारे में कहते हैं नमिमुनिवर के दर्शन कर इंद्र आगासेणुप्पइओ आकाश मार्ग से वापस लौट गए। चौथे अनुग्रह मार्ग का नाम शांतिमार्ग हैं। स्थलमार्ग हो या जलमार्ग हो परंतु मार्गपर चलनेवाले का मार्ग खेमं च सिवं अणुत्तरं संति मग्गं च बूहए। खेम कुशल और अणुत्तर शांति से प्रशस्त होता है। जगत् में मार्ग तो अनेक है। रास्ता, पगदंडी, राजमार्ग आदि। कोई कहाँ चलता है, कोई कहाँ चलता है। कोई खेत में, जंगल में, नगर में या पर्वत आदिपर चलते हैं। पथिकको मार्ग की जानकारी होना अनिवार्य है। मार्ग और उन्मार्ग ज्ञान से जाने जाते हैं। अज्ञानी या अर्धविदग्धों के द्वारा बताया गया मार्ग उन्मार्ग होता हैं। मात्र अनंतज्ञानी सर्वज्ञ प्रभु द्वारा दर्शीतपथ सन्मार्ग होता है। उन्मार्गपर अधिक चलनेपर मार्ग कम कटता है और सन्मार्गपर कम चलनेपर मार्ग काफी कट जाता हैं मंजिल करीब हो जाती है। मग्गदयाणं से प्रशस्त मार्ग प्राप्त करने के लिए एक छोटी सी प्रतिज्ञा सूत्र से बताई गई हैं - अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि। मैं अमार्ग का त्याग कर मार्ग का स्वीकार करता हूँ। स्वीकार करनेवाले के मन में यह प्रश्न हो सकता हैं कि मार्ग क्या हैं ? कौनसा हैं ? कितने प्रकार का हैं और उसपर कैसे चला जा सकता हैं ? मार्ग के मुख्य दो स्वरुप हैं। शांतिमार्ग और मुक्तिमार्ग। मुक्तिमार्ग कहो या मोक्षमार्ग वह तो सीधा 147
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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