SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा के अरुणोदय के उद्योत की साक्षी है। परमतत्त्व को भले ही हम इन चर्मचक्षुओं से न देख सके, उनके समीत्त्व का अनुभव न हो पाए चाहे हमें वह कल्पना स्वरुप लगे परंतु परमतत्त्व का अनुग्रह उनकी विशिष्ट शुभकामनाओं का उद्योत बनकर प्रसारीत हो जाता है। परमात्मा भले ही दिखाई नहीं देते परंतु उनकी ज्ञान और करुणा का उद्योत हमपर फैलता है। उस उद्योत में जब हम स्वयं को देखना शुरु करते हैं तब वह सहसा प्रगट होकर प्रकाश बनकर हमारी ओर समस्त को स्पष्ट करता हैं। लोगस्स सूत्र में प्रारंभ में उज्जोयगरे शब्द हैं तो अंत में आइच्चेसु अहियं पयासयरा है। लोगपज्जोयगराणं सूत्र हमारे जीवन की प्रभात का सूत्र है। नींद मेंसे हम कब-कब उठते हैं यह भी महत्त्वपूर्ण है। जैसे जैसे प्रभात होती जाती है अधिकांश लोगोंको अधिक से अधिक नींद आती हैं। सबसे अधिक आलस प्रभात में ही आती हैं। नींद की गोली लेकर सोनेवालों को भी प्रभात में नींद आ जाती है। रात्रि शयन के समय प्रथम प्रहर के बाद नींद से संबंधीत जो हारमोंस श्रावित होते हैं वही प्रभात के समय में कुछ मात्रा में श्रावित होते हैं। कलियुग भी अजीब है। छोटे-छोटे बच्चे रात को बारह-एक बजे के बाद सोते हैं। रात नव बजे के बाद श्रावित हार्मोंस निष्क्रिय हो जाते है। हमें तो बचपन में नव-दस बजे सोने की आदत थी। आज भी हमें ऐसी आदत हैं। जब आपलोग सोने की तैयारी करते हो हम उठ जाते हैं। नरसिंह मेहता ने कहा है 'रात रही जाए ने पाछली खटघडी, साधु पुरुष ने सूई न रहे। खटघडी के दो अर्थ होते हैं। छहघडी अर्थात् और अंतिम घडी। एक घडी चौबीस मिनिट की होती हैं। छह घडी अर्थात् दो घंटे और चौबीस मिनिट। सूर्योदय से पूर्व दो घंटे और चोबीस मिनिट पहले उठना चाहिए। उदाहरण के तौरपर, मानलो अभी ६:३४ बजे का सूर्योदय है तो ४:१० को उठना चाहिए। यदि इस समय उठन सको तो अंतिम घडी अर्थात् सूर्योदय से पूर्व ३४ मिनिट अर्थात् ०६:०६(६ बजकर ६ मिनिट) अथवा ६:१० पर तो उठना ही चाहिए। भगवान पार्श्वनाथ के शासन में अंगातिगाथापति नाम के श्रमण और सुप्रतिष्ठित अणगार आयुष्य पूर्ण करके इसी भरतक्षेत्र में सूर्य और चंद्र हुए हैं। एकबार दोनों एक साथ अचानक भगवान महावीर के समवसरण में अपने अपने विमान के साथ पहुंच गए। दोनों ने आज प्रभु की देशना सुनने का मानस बनाया था। उनके आगमन से भगवान के सान्निध्य में तो कोई फरक नहीं पडा परंतु मूलविमान के साथ आने से प्रकृति में बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया। समवसरण के बाहर रात में भी दिन जैसा प्रकाश फैला रहा। रात में भी दिन किसी अनुभूति हो रही थी। जगत् का यह एक सबसे बडा आश्चर्य था। इस आश्चर्य ने एक ओर आश्चर्य का सर्जन कर दिया। जो परमात्मा की देशना में, दर्शन में, प्रवचन श्रवण में और प्रभु के स्मरण में संलीन थे उन्हें कौन आया कौन गया ऐसा जानने में कोई रस नहीं था। सूर्य-चंद्र की उपस्थिति ने दिन और रात की अनुभूति से जगत् को वंचित कर दिया। परमात्मा का समवसरण, परमात्मा का सान्निध्य और परमात्मा की देशना में तल्लीन साध्वी मृगावतीजी परमात्मा में एकरुप हो चुकी थी। सर्वथा देशनामय होकर प्रभु की वाणी में खो चुकी थी। स्वरुप में समा गयी थी। प्रभुदर्शन स्वदर्शन का कारण बन गया था। देशनाकाल पूर्ण होते ही सूर्य-चंद्र मूलविमान के साथ स्वस्थान वापस लौट गए। अचानक 122
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy