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________________ सिर्फ नाथ ही नहीं मैं तुम्हारी सिद्धपर्याय देख रहा हूँ जो तुम्हारे भव्यत्त्व की भावपर्याय है। तुम भी जगत् के जीवों के सिद्धत्त्व को जानना, समझना और प्रगट करना। एकबार आँख बंद करके आप भी इस संबंध का स्वीकार करो। जगत् के जीवों के साथ आपने करुणामय संबंध का स्वीकार किया है। पानी की बूंद में भी असंख्यात जीव हैं ऐसी भगवानकी भाषा को जाना है, माना है, पहचाना है। आँगन की चींटी को देखकर आप हटकर निकल जाओगे। उसे बचा तो लोगे आप परंतु दया मेरा धर्म है, करुणा मुझे करनी है, अहिंसा का पालन मेरा कर्तव्य है। यह सब करुणामय संबंध है। जब आप यह सोचोगे मैं इस चींटी का नाथ हूँ, स्वामी हूँ आपका करुणामय, दयामय संबंध प्रेममय और वात्सल्यमय हो जाएंगा। स्वयं के बच्चे को जिस प्यार की दृष्टि से देखते है वही प्यार जगत् के सभी जीवों के प्रति होगा । संसार के संबंधो में हम प्रेम को इज्जत के साथ तोलते है। किसी का सौ रुपए का कवर आएगा तो हम सामने भी सौ का ही कवर करते है। पिता यदि पुत्र को कुछ देता है तो वह दया नहीं प्रेम है। करोडपति का बच्चा जिसे पचास रुपए से कम की चॉकलेट नहीं खिलाई जाती हैं फिर भी वह कोई पांच छह रुपए की टॉफी देवे और बच्चा हाथ फैलाकर लेले तो माता पिता को इज्जत खो गई ऐसा लगता है। किसी ज्योतिषी के ये कहनेपर कि गुरुवार को बेसन का दान दोगे तो आपका पितृदोष टल जाएगा। मोहल्ले के बाहर कुछ बच्चों को गुड चने खिला देते हो और अपने को दानेश्वरी समझते हो। कल की बची दो रोटी गाय को खिलाकर अपने आपको पुण्यशाली कहलानेवाले आपको कभी लगता है कि गाय में यदि सिद्धत्त्व है तो मेरे नमस्कार हो । सब्जी मंडी में खडे रहकर सब्जी का नाप तोल करने में भावताल करने में माथापच्ची करनेवाले आपको कभी भींडी की एकाद सींग हाथ में लेकर ऐसा लगता यदि मेरा चले तो भगवान की तरह इस जीव को शासन रसीक बनाउ। सभी जीवों को तारने की, शासन रसीक बनाने की क्षमता स्वयं में न भी लगे तो एकाद जीव को बुझाने की इच्छा होती है क्या ? लोगनाहाणं प्राप्त हो जानेपर सभी जीवों के जीवत्त्व में शिवत्त्व के दर्शन होते है। सभी भव्यत्त्व में सिद्धत्त्व के दर्शन होते है । बहुत प्रेम से एकबार लोगनाहाणं के चरणों में नमस्कार कर के तो देखो। पूर्ण श्रद्धा के साथ, आस्था के साथ जगत् का विस्मरण कर जगन्नाथ का स्मरण करो । अनुभव करो लोगनाहाणं आपके मस्तकपर हाथ रखकर आपको नाथ होने का प्रमाणपत्र दे रहे है। जबतक मोक्ष प्राप्त न हो संपूर्ण ब्रह्मांड के विचरण में जो हमारे साथ है हमारे मस्तक पर जिनका हाथ है ऐसे नाथ प्रीत के साथ हमारे हित की पूर्ति कैसे करते है इसे हम कल देखेंगे। अब आप भी नाथ है ऐसा मानकर रुआब और गौरव के साथ लोगनाहाणं के स्मरण में नमोत्थुणं कर स्वयं के नाथत्त्व कां अनुभव करो। नमोत्थुणं लोगनाहाणं ... नमोत्थूणं लोगनाहाणं ... . नमोत्थुणं लोगनाहाणं. ... 000 101 *
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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