SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 54 Jainism Through Science प्रतिभा को नष्ट कर दी है, ध्वस्त कर दी है, ऐसे जैनत्वहीन जैनियों में इन सब का प्रवेश हो गया है, वह हमारे लिए चिन्ता व शर्म का विषय है । सच्चा श्रावक पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतों का यथासंभव, यथाशक्ति पालन करता है । श्रावकों के लिए क्या खाद्य और क्या अखाद्य है उसका यत्किंचित् स्वरूप सातवें भोगोपभोग विरमणव्रत के अंतर्गत आता है । जिन में 1 मधु, 2 मक्खन, 3 मद्य और 4 मांस का पूर्णतया निषेध किया है, उसके बारे में हम बाद में विचार करेंगे। अभी तो विगइ के बारे में विचार करना है, जो सामान्यतया भक्ष्य है । यद्यपि जैन शास्त्रों में साधु मुनियों को स्पष्ट रूप से बिना कारण दूध, दहीं, घी, तेल आदि विगइ का उपयोग करने की छूट नहीं है । सिर्फ ग्लान, अशक्त और स्वाध्याय - ध्यान में अत्यधिक प्रवृत्तिशील मुनि ही आचार्यादि गीतार्थों की आज्ञानुसार इन विकृतियों का उपयोग कर सकते हैं । ये सब विकृत्तियाँ अपने नामानुसार मन और शरीर में विकार पैदा करने में समर्थ होने से इस तरह का निषेध किया गया है, अतः स्वस्थ मनुष्य के लिए घी, दूध, दही आदि अधिक मात्रा में लेना योग्य नहीं है । 1. दूध : दूध वैज्ञानिक दृष्टि से पूर्ण आहार है । मनुष्य के शरीर के लिए आवश्यक सब प्रकार के तत्त्व प्रायः दूध में हैं । अतः दूध मनुष्य के लिए अत्यावश्यक चीज मानी गयी है । किसी का कहना है कि दूध प्राणिज द्रव्य होने से त्याज्य है और मांसाहार तुल्य है किन्तु उनकी यह बात सत्य नहीं हैं । यदि ऐसा मान लिया जाए तो जगत में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा, जिसने बचपन में दुग्धपान किया न हो । वस्तुतः दूध सब प्राणियों के लिए अपने जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है । और हर मादा पशुके स्तनों में उसका निर्माण ही अपने बच्चों-शिशु के पोषण के लिए ही होता है । हर शिशु के लिए प्रथम आहार ही दूध होता है । चाहे वह बच्चा शेरनी का हो, मृगली का हो, गाय का हो, भैंस का हो या स्वयं मनुष्य का शिशु ही क्यों न हो ? दूध का निर्माण आहार के लिए ही हुआ है और अनादि काल से हर मानव शिशु ने दूध का आहार किया है अत: दूध के बारे में ऐसी शंका करने की जरूरत नहीं है । हां, वर्तमान युग में जब गाय-भैंस का दूध मशीन से निकाला जाता है तब कभी कभी ज्यादा दूध प्राप्त करने के लिए अधिक देर तक मशीन लगी रहने से दूध में प्राणियों का खून भी आ सकता है, अतः ऐसे दूध का त्याग करना उचित है किन्तु भारत में ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम है । 1 जैन शास्त्रों में विगइ के द्वार में सामान्यतया गाय, भैंस, अजा (बकरी), ऊंटनी और भेडिये के दूध को विगइ रूप में बताया गया है । इन पांच प्रकार के दूध को ही विगइ कहा गया है अन्य किसी भी पशु के दूध की विगइ में गिनती नहीं की गई है । ' I दूध में कैसीन नामक प्रोटीन (80%) है और वह होजरी में पैदा होनेवाले एसीड (HCL) और रेनीन नामकपाचक रस से सुपाच्य है । दूध में चरबी भी अच्छी तरह है और वह सुपाच्य है । साथ-साथ लेक्टोज (Lactose) नामक कार्बोहाइड्रेट भी है। दूध में सोडियम, फोस्फोरस, सल्फर, मैग्नेशियम, केल्शियम, लोह आदि खनिज तत्व भी है, यद्यपि लोह बहुत कम मात्रा में होने पर
SR No.032715
Book TitleJain Darshan Vaigyanik Drushtie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1995
Total Pages162
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy