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________________ 40 Jainism : Through Science निलम्बित रखना चाहिये जिनका अस्तित्व एक संतुलित धार्मिक/दार्शनिक निरक्षरता की कमजोर ज़मीन पर टिका हुआ है । हमें कोशिश करनी चाहिये कि समाज की धार्मिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक निरक्षरता उत्तरोत्तर कम हो और उसके सम्मुख वे मुद्दे उभर कर आयें जिन्हें ले कर एक होना संभव है । इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए हमें जैन विद्वानों और पत्र-संपादकों, लेखकों और साहित्यकारों की एक समिति बनानी चाहिये जो उन आधारों की जाँच-पड़ताल करे जिनकी बुनियाद पर खड़े रह कर यह ऐतिहासिक कार्य किया जा सकता है। ___ मैं जानना चाहूँगा कि इस सप्तसूत्री योजना के बारे में आपकी क्या राय है और आप इससे किस हद तक सहमत या असहमत हैं अथवा इसमें किस तरह का परिवर्तन-परिवर्द्धन चाहते हैं ? क्या आपकी इसके क्रियान्वयन में मदद करने की तैयारी है ? यदि हाँ, तो कृपया सूचित कीजिये कि उसका प्रथम संभावित स्वरूप क्या होगा? वास्तव में यदि आप अपने चित्त-कीअन्तिम-गहराई से इस योजना के क्रियान्वयन से सहमत हैं तो कृपया अवश्य लिखिये ताकि आपसे प्रत्यक्ष अथवा पत्रसंपर्क किया जाए और समाज-में-एक परिवर्तनोन्मुख आबोहवा (क्लाईमेट) बनायी जाए । ___ संभव है आपके पास वक्त की कमी हो । यदि ऐसा है तो भी इस पत्र की पहुँच देने की शालीनता निभाइये और इस संबन्ध में अपनी संक्षिप्त प्रतिक्रिया भेजिये । ___ - नेमीचंद जैन __ (तीर्थकर : मार्च-अप्रैल,91) 7.(ब) वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन खतरनाक होगा - मुनि नन्दीघोष विजय आपका पत्र साद्यन्त पढ़ा । प्रस्तुत सप्तसूत्री योजना आज की परिस्थितियों में काफी ज़रूरी है, तथापि उस के क्रियान्वयन की संभावना बहुत कम दिखायी पड़ती है; क्योंकि प्रत्येक योजना में धन की आवश्यकता है और समाज से यदि आर्थिक सहयोग नहीं मिला तो एक भी योजना साकार नहीं हो सकती। . आज जैन समाज में लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों रूपयों का दान होता है, हो रहा है; किन्तु अधिकांश व्यय प्रायः कुछेक क्षेत्रों में ही हो रहा है, वह भी सुनियोजित नहीं है । अन्य क्षेत्र, जैसे साधर्मिकों का उद्धार, अध्ययन-अध्यापन-अनुसन्धान, अहिंसा-का-प्रचार यानी जीव-दया इत्यादि में बहुत अल्प मात्रा में धन-राशि खर्च होती है; अतः दान के प्रवाह की दिशा बदलने की जरूरत है । इस के लिए एक क्रमबद्ध आयोजना चाहिये । (1) 'अहिंसा शॉप'/ अहिंसा बैकरी' के आयोजन द्वारा साधर्मिकों का उद्धार करना चाहिये । आर्थिक दृष्टि से निर्बल साधर्मिकों को अहिंसक बिस्किट, मिठाई इत्यादि बनाने की तालीम दे कर, उसमें ज़रूरी साधन-सामग्री भेंट की जाए ताकि वे स्वंय अपना व्यवसाय बना
SR No.032715
Book TitleJain Darshan Vaigyanik Drushtie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1995
Total Pages162
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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