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________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास के निहालचन्दजी था भगवानप्रसादजी नामक २ पुत्र हुए। इनमें लाला निहालचन्दजी के लक्ष्मी. चन्दजी, गोपीचन्दनी, नमीचन्दजी, संतरामजी तथा बनारसीदासजी नामक ५ पुत्र हुए। - लाला लक्ष्मीचन्दजी स्वर्गवासी हो गये हैं। आपकी ओर से जैन हाई स्कूल अम्बाला में प्रथम पास होने वाले छात्र को प्रति वर्ष १००) की थैली दी जाती है। आपके पुत्र ताराचन्दजी हुए इनके पुत्र निरंजनलालजी बी० ए० में पढ़ते हैं। लाला गोपीचन्दजी का जन्म संवत् १९२२ में हुआ । राज दरबार में आपका मान हैं। महकमा पोलीस से इन्हें इन्तजाम के कामों के लिये सार्टिफिकेट मिले हैं। आपके पुत्र किशोरीलालजी, अम्बाला हाई स्कूल के लिये डेपुटेशन लेकर मद्रास, बम्बई, हैदराबाद की ओर गये थे। आप अम्बाला में असेसर हैं। आप बड़े उत्साही सज्जन हैं। इनके पुत्र रतनचन्दजो हैं। लाला संतरामजी श्री आरमानन्द जैन सभा पंजाब के प्रधान हैं। आप पंजाब के मन्दिर मार्गीय जैन समाज में प्रतिष्ठित सज्जन हैं। आप अम्बाले के ऑनरेरी मजिस्ट्रेट, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के मेम्बर डिस्ट्रिक्ट दरबारी और असेसर हैं। आपके पुत्र श्यामसुन्दरजी हैं। लाला बनारसीदासजी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। आप के टेकचन्दजी चिम्मनलालजी, विजयकुमारजी तथा पवनकुमारजी नामक चार पुत्र हैं । . लाला नानकचन्द हेमराज गधैया, अम्बाला यह परिवार श्वेताम्बर स्थानकवासी आम्नाय का मानने वाला है। इस खानदान में लाला जयदयालजी हुए । उनके पुत्र हीरालालजी और पौत्र नानकचन्दजी थे। लाला नानकचन्दजी का जन्म १८७९ में तथा स्वर्गवास संवत् १९६४ में हुआ। आपके लाला मिलखीरामजी, श्रीचंदजी तथा हेमराजजी नामक ३ पुत्र हुए। लाला श्रीचन्दजी का जन्म संवत् १९३० में हुआ। आपने कई धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करवा कर मुफ्त बटवाई । आप प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। संवत् १९७४ में आप स्वर्गवासी हुए। इनके यहाँ कपड़े का व्यापार होता है। लाला शिवप्रसादजी के ओमप्रकाशजी, नत्थूरामजी, त्या पवनकुमारजी तथा लाला अमरनाथजी के जोगेन्द्रप्रसादजी, विमलकुमारजी व मोहनलालजी नामक ३ पुत्र हैं। लाला श्रीचन्दजी के छोटे भ्राता हेमराजजी का जन्म १९४४ में हुआ। आप योग्य तथा धार्मिक व्यक्ति हैं। आप अम्बाला जैन युवक मण्डल के प्रेसिडेण्ट रहे। तथा लेन देन और हुंडी चिट्ठी का काम करते हैं। लाला फग्गूशाह रतनशाह गधैया, जम्मू (काश्मीर) लाला महूशाहजी स्यालकोट में रहते थे, तथा वहाँ के मालदार और इजतदार व्यापारी माने जाते थे। इनको महाराजा गुलाबसिंहजी काशमीर ने बड़ी इजत के साथ व्यापार करने के लिये जम्मू
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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