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________________ गधेया संवत् १९४०, १९४५, १९४८, १९५१, १९५४ एवम् १९६२ में हुआ। इनमें लाला हंसराजजी संवत् १९४० में स्वर्गवासी होगये हैं। शेष भाइयों में केवल लाला देवीचन्दजी और जंगीलालजी को छोड़ कर सब अलग अलग अपना स्वतंत्र व्यापार करते हैं। देवीचन्दजी और जंगीलालजी मेसर्स काशीराम देवीचंद के नाम से सम्मिलित रूप से व्यवसाय करते हैं। .. लाला मोतीलाल बनारसीदास, लाहौर इस खानदान के पूर्वज लाला बूटेशाहजी अपने समय के नामी जौहरी होगये हैं। आप महा. राजा रणजीतसिंहजी के कोर्ट ज्वेलर थे। आप लाहौर म्युनिसिपैलेटी के प्रथम मेम्बर थे। इनके वल्लो. शाहजी, हरनारायणजी, विशनदासजो, तथा महाराजशाहजी नामक ४ पुत्र हुए। . लाला विशनदासजी के पुत्र खुलाखीशाहजी हुए। इनके पुत्र लाला हीरालालजी एडवोकेट बी० ९० एल० एल० बी० लाहौर के प्रतिष्ठित वकील हैं तथा अमर जैन होस्टल और एस. एस. जैन सभा पंजाब के खास कार्य कर्ता हैं। इनसे छोटे भाई लाला मुन्शीलालजी बी० ए० एल० एल० बी० वकील थे इनका स्वर्गवास होगया है। इनके पुत्र मदनलालजी सर्विस करते हैं। हीरालालजी के पुत्र जवाहर लालजी ने इस साल बी० ए० की परीक्षा दी है। . लाला महाराजशाहजी के गंगारामजी तथा नत्थूमलजी नामक २ पुत्र हुए। इनमें गंगारामजी के पुत्र मोतीलालजी तथा पत्रालालजी हुए। लाला मोतीलालजी ने सन् १९०३ में संस्कृत पुस्तकों का म्यापार तथा प्रकाशन जोरों से किया । आपका स्वर्गवास सं० १९८६ में हो गया है । आप श्री आत्मानन्द . जैन सभा पंजाब के गुजरांवाले के प्रथम अधिवेशन के सभापति थे। इस समय आपका लाहोर में मोतीलाल बनारसीदास के नाम से प्रेस है। आपके यहाँ से संस्कृत, हिंन्दी तथा अंग्रेजी की लगभग २०० पुस्तकें निकली हैं। यह ग्रन्थालय पंजाब के पुस्तक व्यवसाइयों में अपना खास स्थान रखता है। लाला मोतीलालीजी के पुत्र लाला सुन्दरलालजी गधैया विद्यमान हैं। आप शिक्षित तथा उन्नत विचारों के सज्जन हैं तथा ग्रन्थ प्रकाशन व विक्रय का कार्य भली भांति संचालित करते हैं। इसी तरह इस परिवार में पन्नालालजी के पुत्र खजानचन्दजी तथा नत्थूसिंहजी के माणकचन्दजी हैं। ___ लाला गोपीचन्द किशोरीलाल जैन, अम्बाला यह खामदान कई पुश्तों से अम्बाला में निवास कर रहा है। इस खानदान में लाला बहादुर मलजी के लाला पुनीलालजी, दुर्वकमलजी, तथा जयलालजी नाम के ३ पुत्र हुए। इनमें लाला राजारामजी ४५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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