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________________ पोसवाल माति का इतिहास उसकी बिल्डिंग यूनियन पोर में प्रदान करदी है। इसी प्रकार आप हमेशा धार्मिक, सामाजिक और पब्लिक कार्यों में सहायता प्रदान करते रहते हैं। आप एक मिलनसार, शिक्षित एवम् उच्च विचारों के सजन है। बीकानेर दरवार ने मापके कार्यों से प्रसन्न होकर आपको आनरेरी मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त किया है। आपके इस समय • पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः विजयसिंहजी, पनेचन्दजी, श्रीचन्दजी, एवम् परतापचन्दजी हैं। भापका मापार कलकत्ता एवम् ग्वालंदो घेवर बाजार में जूट का होता है । जोधपुर का मोदी खानदान इस खानदान पाले वास्तव में गणधर चौपडा गौत्र के हैं मगर राज्य की ओर से 'मोडी, की उपाधि मिलने से यह बानदान “मोदी" के नाम से प्रसिद्ध है। इस खानदान का इतिहास भी उज्वल और उत्साह वर्द्धक है । कहना न होगा कि इसके पूर्वजों ने अपने उज्ज्वल कारनामों से इतिहास में अपना खास स्थान प्राप्त कर लिया है। मोदी पाथाजी-इस खानदान का इतिहास उस समय से प्रारम्भ होता है जब संवत् १७३५ में जोधपुर के तत्कालीन महाराजा यशवन्तसिंहजी का स्वर्गवास हो गया था और कई राजनैतिक परिस्थितियों के वश होकर उनके पुत्र महाराज भजीतसिंहजी को छप्पन के पहाड़ों में छिपकर रहना पड़ा था। उस समय उपरोक खानदान के पूर्व पुरुष नाथाजी के पुत्र पीथाजी (पृथ्वीराजजी) जालौर में रहते थे। उस कठिन समय में एक बार पीयानी जङ्गल में महाराजा अजितसिंहजी के साथियों से मिल गये, जिन्होंने उन्हें महाराजा भजितसिंहजी से मिलाया । कहना न होगा कि उस समय महाराजा अजितसिंहजी बहुत कठिन विपत्ति (बिखे ) में थे। उस विपत्ति के समय में पीथाजी ने उन्हें अन्न और धन की बहुत काफी सहायता पहुँचाई जिसकी वजह से उनका महाराजा से तथा उनके साथियों से-जिनमें वीरवर राठौड़ दुर्गाराम, मुकुन्ददास मेदतिया, गोपीनाथ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं-इनका काफी परिचय हो गया। जब संवत् १७६३ में औरंगजेब का देहान्त हो गया और महाराजा अजितसिंहजी गद्दीनशीन हुए, तब उन्होंने पीथाजी को बुलाकर उनका बड़ा सस्कार किया और वंश परम्परा के लिए "मोदी" की उपाधि दी। इसके सिवा "सरकार की भाण जठे थारो डाण" कहकर उनके लिए सायर महसूल की भी माफी दी। पीथाजी के फत्ताजी ( फतेचन्दजी ) नामक एक छोटे भाई और थे। वे भी जालोर में रहते थे। महाराजा अजितसिंहजी की कृपा होने से पीथाजी के वंशज जोधपुर में आकर बस गये मगर फत्ताजी जालौर में ही रहे।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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