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________________ भोपड़ा एक लाख रुपया खर्च होने का अनुमान है। गंगा शहर में इस परिवार की बड़ी र मालीशान हवेलियां बनी हुई हैं। सेठ घेवरचंद दानचंद चौपडा, सुजानगढ़ इस परिवार के वर्तमान मालिक जैनश्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के अनुयायी हैं। इनके पूर्वज शुरू शुरू में बीकानेर के निवासी थे। वहां वे लोग उस समय में राजकीय कार्य करते थे। वहाँ से घटना चक्र वश उनके वंशज चलकर आसोप नामक स्थान पर मा बसे जो कि वर्तमान में मारवाद स्टेट का एक ठिकाना है। कुछ समय तक ये लोग यहीं रहे। अन्त में संवत् १९०० के लगभग इस वंश के एक पुरुष जिनका नाम सेठ पूनमचन्दजी था चलकर डीडवाना (जोधपुर स्टेट ) में आ बसे । यहाँ भी आप राज कार्य ही करते रहे । मापके चार पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सेठ हीराचंदजी, सेठ उदयचन्दजी, सेठ घेवरचन्दजी एवम् सेठ मिलापचंदजी था। घेवरचंदजी-उपरोक्त चारों भ्राताओं में आप का नाम विशेष उल्लेनीय है भाप बड़े प्रतिभाशाली और कर्मवीर पुरुष थे। संवत् १९३५ में आपने शुरूर में ग्वालंदो (बंगाल) में अपनी फर्म खोली। उस समय इस फर्म पर बहुत मामूली म्यापार होता था। मगर भाप व्यापार कुशल सज्जन थे और उस समप बंगाल आसाम में जूट का व्यापार जोरों पर हो रहा था, अतएव कहना न होगा कि इस व्यापार में आपने बहुत द्रव्य उपार्जन किया। यहां तक कि साधारण स्थिति में होते हुए भी आप लखपतियों में गिने जाने लग गये । बंगाल के जूट के व्यापार का सम्बन्ध कलकत्ता में है अतएव आपने अपने व्यापार की विशेष उन्नति होने के लिये संवत् १९६३ में कलकत्ता में भी अपनी एक ब्रांच खोली और जूट का व्यापार प्रारम्भ किया। इस फर्म के द्वारा भी आपको बहुत लाभ हुआ। व्यापार के अतिरिक्त भार्मिकता की ओर भी आपकी अच्छी रुचि थी। आपके दानचन्दजी नामक एक पुत्र हुए । सेठ घेवरचन्दजी का स्वर्गवास संवत् १९०१ में होगया। दानचंदजी-वर्तमान में आप ही इस परिवार में मुख्य व्यक्ति हैं। आप भी अपने पिताजी की तरह व्यापार चतुर पुरुष हैं। यहां की पंचायती एवम् थली की ओसवाल समाज में आप एक प्रतिष्ठित व्यक्ति माने जाते हैं। आप यहां के प्रायः सभी सार्वजनिक जीवन में सहयोग प्रदान करते रहते हैं। आपने हाल ही में अपने स्वर्गीय पिताजी की स्मृति में एक श्री घेवर पुस्तकालय स्थापित किया है जिस की शानदार इमारत ३००००) रुपया लगा कर आपने बनवादी है। इसके अतिरिक्त मापने अपने स्वर्गीय पिताजी की स्मृति में इस्टर्न बंगाल रेल्वे के ग्वालंदो की स्टेशन का नाम ग्वालंदो घेवर बाजार कर दिया है। उसी स्थान पर आपने पब्लिक के लिए एक अस्पताल बनवा कर ३०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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