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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास 1 सेठ कुशलचन्दजी का जन्म संवत् १९३१ में हुआ । आपके भी कोई पुत्र न था । अतएव आपने अपने भाई सुनीलालजी के पुत्र चंदनमलजी को दत्तक लिया। वर्तमान में आप ही इस परिवार में बड़े हैं। सेठ चुनीलालजी का जन्म सं० १९३५ में हुआ । आप यहाँ के प्रतिष्ठित पुरुष थे । आपको पाटके व्यापार का अच्छा अनुभव था तथा जवाहिरात की परीक्षा भी आप अच्छी जानते थे । आपका स्वर्गवास सम्वत् १९७५ में हो गया। आपके चन्दनमलजी तथा कन्हैयालालजी नामक २ पुत्र हुए । चन्दनमलजी कुलचन्दजी के यहाँ दतक चले गये। कन्हैयालालजी के मांगीलालजी नामक एक पुत्र हैं। सेठ चुनीलालजी और कुशलचन्दजी के परिवार की सिराजगंज, कलकत्ता, भडंगामारी, मीरगंज, सोनातोला, और जवाहरबाड़ी आदि स्थानों पर शाखाएँ हैं जहाँ पाट का व्यापार होता है। सरदारशहर इस परिवार की बहुत बड़ी २ हवेलियाँ बनी हुई हैं। आप लोग तेरापंथी जैन श्वेताम्बर धर्म के अनुयायी हैं । में सेठ सुल्तानचन्द जुहारमल दूगड़ कोठारी, कलकत्ता इस फर्म के मालिकों का मूल निवासस्थान वीदासर है। आप लोग जैन तेरापंथी सम्प्रदाय के मानने वाले हैं। यह फर्म करीब ८० वर्ष पूर्व जमालदे नामक स्थान पर जो कूँचबिहार में है, सेठ मुक्तानचन्दजी द्वारा स्थापित की गई। इसके कुछ वर्ष बाद मेखड़ीगंज ( कुचबिहार) में आपने इसी नाम से एक फर्म और खोली । इन दोनों फर्मों पर तमाखु और कुष्टा का काम शुरू किया गया जो इस समय भी हो रहा है। सेठ मुल्तानचन्दजी के कोई पुत्र न होने से जुहारमलजो दत्तक आये । आपके हाथों से इस फर्म की बहुत तरक्की हुई। आप बड़े व्यापार कुशल और मेधावी व्यक्ति थे । आपका स्वर्गवास सम्वत् १९६२ में हो गया। आपके भी कोई पुत्र न होने से भैरोंदानजी आपके नाम पर दत्तक लिये गये । आपने भी फर्म की अच्छी उन्नति की । आप भी अपने पिता की भांति व्यापोर कुशल एवम् मिलनसार व्यक्ति थे । आपका भी स्वर्गवास सम्वत् १९९० में हो गया। आपका ध्यान धार्मिक बातों में बहुत रहा। आपके कानमलजी एवम् सोहनलालजी नामक दो पुत्र हैं। आजकल आप दोनों ही फर्म का संचालन करते हैं। आप भी उत्साही और मिलनसार सज्जन हैं। कानमलजी के नौरतनमलजी एवं जतनमलजी नामक दो पुत्र हैं । आपकी कलकत्ता में मुल्तानचन्द जुहारमल के नाम से फर्म है जहाँ ब्याज का काम होता है । इस फर्म पर मुनीम नेमचन्दजी सिंधी बिदासर वाले मुनीमात का काम करते हैं। आपके समय में फर्म की बहुत उन्नति हुई। लाला छोटेलाल अबीरचन्द दूगड़, आगरा इस खानदान के लोग श्वेताम्बर जैन मन्दिर आम्नाय को मानने वाले हैं। यह खानदान करीब ४१५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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