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________________ दूगड़ आपके केवलचन्दजी और सालमचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। दोनों ही भाई करीब ७० वर्ष पूर्व जलपाई गौड़ी नामक स्थान पर गये और साधारण काम काज शुरू किया । पश्चात् संवत् १९३१ में आप लोगों ने जेठमल केवलचन्द के नाम से अपनी फर्म स्थापित की। इस पर कंपड़ा, सूत, किराना एवम् गल्ले का व्यापार प्रारम्भ किया । इसमें आप लोगों की बुद्धिमानी से अच्छी उन्नति हुई । आप लोगों का स्वर्गवास हो गया । केवलचन्दजी के पुत्र न हुआ । सालमचन्दजी के चुनीलालजी नामक एक पुत्र हुए। सेठ चुन्नीलालजी ही इस समय इस परिवार में बड़े पुरुष हैं। आप मिलनसार हैं। आपने अपने व्यापार को विशेष रूप से बढ़ाया तथा कलकत्ता में चुनीलाल जसकरन के नाम से फर्म खोली । आजकल इसका नाम चुनीलाल शुभकरन पड़ता है। इसपर जूट, कपड़ा एवं चलानी का व्यापार होता है। इसमें आपको अच्छी सफलता रही। आपके इस समय ७ पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः जसकरनजी, सूरजमलजी, जैचंदलालजी, चम्पालालजी, सोहनलालजी, शुभकरनजी और पूनमचन्दजी हैं। इनमें से जसकरनजी अपना स्वतन्त्र व्यापार करते हैं। शेष सब शामिल हैं। आप लोग जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के मानने वाले हैं। बानिन्दा के दूगड़ दानसिंहजी का परिवार, सरदारशहर सेठ टीकमचंदजी बानिंदा ( सरदारशहर) नामक स्थान से चलकर यहाँ आये । आपके चार पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सेठ शिवजीरामजी, सेठ जीवनदासजी, सेठ मुकनचन्दजी और सेठ दानसिंहजीं थे । करीब ८० वर्ष पूर्व आप चारों ही भाइयों ने मिलकर सिरसागंज में अपनी एक फर्म स्थापित की तथा अच्छी उन्नति की। इनमें खासकर उन्नति का श्रेय सेठ दानसिंहजी को है । आप बड़े प्रतिभा सम्पन्न, व्यापार चतुर और कठिन परिश्रमी व्यक्ति थे । आपका स्वर्गवास संवत् १९५२ में हो गया। आपके प्रतापमलजी, कुशलचन्दजी, चुन्नीलालजी एवम् मोतीलालजी नामक चार पुत्र हुए. 1 सेठ प्रतापमलजी व्यापारिक पुरुष थे। आपका यहाँ की समाज में अच्छा प्रभाव था । आपके कोई पुत्र न था । अतएव आपने अपने छोटे भाई मोतीलालजी को दतक लिया। आप भी मिलनसार और सज्जन व्यक्ति हैं । आपका जन्म सम्वत् १९४४ में हुआ। पहले तो आप अपनी पुरानी फर्म में साझीदारी का काम करते रहे। मगर फिर आपने अपना काम अलग कर लिया एवंम् इस समय सरदारशहर ही में बैंकिंग का काम करते हैं । आपके नेमीचन्दजी नामक एक पुत्र हैं। आप भी उत्साही नवयुवक हैं। आपको फोटोग्राफी का बहुत शौक है। आपने कई इन्लार्जमेंट अपने हाथों से तैयार किये हैं। मशीनरी लाइन में मी आपको दिलचस्पी है । ४१५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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