SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 899
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चील मेहतां महाराजा शंभूसिंहजी ने उदयपुर बुलालिया, तथा चौथे पुत्र इन्द्रसिंहजी को बीकानेर महाराज ने बुलालिया । अभी इनके परिवार में पृथ्वीसिंहजी जयसिंहजी तथा बीसजी अजमेर रहते हैं । मेहता जालिमसिंहजी - आपने राशंमी प्रान्त में अपने नाम से जाहिमपुरा नामक एक गाँव बसाया । संवत् १९२५ में आप खादी के हाकिम थे। लेकिन आपने वेतन नहीं लिया । पश्चात् आप हिसाब दफ्तर के हाकिम बनाये गये । दरबार ने प्रसन्न होकर बरोड़ा नामक गांव तथा एक मौहरा प्रदान किया । संवत् १९३१ में आपने अपने स्थान पर बड़े पुत्र अक्षयसिंहजी को जहाजपुर का हाकिम बनाकर भेजा । संवत् १९३६ में आप स्वर्गवासी हो गये । आपके अक्षयसिंहजी, केशरीसिंहजी और उग्रसिंहजी नामक ३ पुत्र हुए। मेहता अक्षय सिंहजी - आपने जहाजपुर जिले की आय को बढ़ाया, तथा अपने भाई और पुत्रों के नाम पर अखयपुरा, केसरपुरा और जीवनपुरा नामक ३ गाँव बसाये । आपको महाराणा ने निम्बाहेड़ा के सरहद्दी मामले में अपना मातेमिद बनाकर भेजा था। इसके पश्चात् आप कुम्भलगढ़ और मगरे के हाकिम बनाये गये । आपने लुटेरे भीलों को कृषि में लगाया तथा मगरा जिले की आबादी बढ़ाई। इसके बाद आप मांडलगढ़ तथा भीलवाड़ा के हाकिम हुए। संवत् १९४० में आपके ज्येष्ठ पुत्र जीवनसिंहजी के विवाह प्रसंग पर महाराणा आपकी हवेली पर मेहमान होकर पधारे । संवत् १९५६ के अकाल के समय आपने गरीब लोगों की बहुत इमदाद की । भिंडर ठिकाने को कर्ज मुक्त करने की व्यवस्था आपने व्यवस्थित ढंग से की। इसी तरह आप माल, फौज, खजाना, निज सैम्य सभा आदि महकमों में कार्य्यं करते रहे । और संवत् १९६२ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र जीवनसिंहजी तथा यशवंतसिंहजी हुए, इनमें यशवंतसिंहजी, केशरीसिंहजी के नाम पर दत्तक गये । मेहता जीवन सिंहजी - आप लगातार ३५ सालों तक कुम्भलगढ़, सहाड़ा, कपासन, जहाजपुर, चित्तौड़, आसींद, भीलवाड़ा, मगरा आदि स्थानों के हाकिम रहे। महाराणाजी ने समय २ पर पुरस्कार आदि देकर आपकी प्रतिष्ठा बढ़ाई। मेवाड़ के रेजिडेंट तथा अन्य अंग्रेज आफीसरों ने आपकी प्रबंध कुशलता व का शक्ति की समय २ पर सराहना की है। कुछ सालों से आप महद्राज सभा के मेम्बर नियुक्त हुए हैं। महाराणा भूपालसिंहजी को आप पर बड़ी कृपा है। आपके तेजसिंहजी, मोहनसिंहजी, तथा चन्द्रसिंहजी नामक ३ पुत्र हैं । महता जसवन्तसिंहजी —- आप मेहता जीवनसिंहजी के छोटे भ्राता हैं तथा अपने काका केशरीसिंह जी के नाम पर दत्तक गये हैं। आपने राज्य के विविध प्रतिष्ठित पदों पर काम किया है। कई वर्षों तक आप जोधपुर की शीसोदिनीजी महारानी के पास कामदार रहे। इसके बाद आप मेवाड़ में चित्तौड़ 343
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy