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________________ कावड़िया ने अपने अपूर्व वीरत्व का परिचय दिया था उसी प्रकार अपनी चिरसंचित भसंख्यात सम्पत्ति को महा. राणा प्रताप की सेवा में अर्पित कर अपनी विकारता का परिचय दिया था। कर्नल जेम्सटाड के कथनानुसार वह द्रव्य इतनी थी, जिससे २५ हजार सैनिक १२ वर्ष तक निर्वाह कर सकें। कहना न होगा, कि इस सम्पत्ति को पाकर महाराणा प्रताप ने अपनी विसरी हुई शक्ति को क्टोरा और मेवाड़ के बहुत से परगने अपने अधिकार में किये। भामाशाह का विस्तृत परिचय इस ग्रंथ के राजनैतिक विभाग में पृष्ठ ७३ में दिया गया है। उसी प्रकार इनके माई ताराचन्द ने भी बहुत बार युद्ध में लड़कर अपना हस्त कौशल दिखलाया था । ___ भामाशाह के पश्चात् उनके पुत्र जीवाशाह हुए। वे महाराणा अमरसिंहजी के प्रधान रहे। ' इसके पश्चात् अब महाराणा कर्णसिंहजी मेवार की राजगद्दी पर विराजे सब जीवाशाह के पुत्र अक्षयराज मेवाड़ के प्रधान बनाये गये। इस प्रकार तीन पुश्त तक प्रधानगी का काम इस वंश के हाथ में रहा । और सवंचवानेही योग्यता से उसे संचालित किया। 2. लक्षवराज की कुछ पुश्त पश्चात् जपचन्दजी, कुन्दनजी और वीरचन्दजी नामक तीन बन्Y हुए। प्रजा की तरफ से जब भाप लोगों के पुश्तैनी तिलक के सम्मान में कई भाने लगा तब सालीन महाराणा सरूपसिंहजी में एक नये परवाने द्वारा फिर से मापन सम्मान बढ़ाया। यह परकमा इसी अन्ध में राज. मैतिक और सैनिक महत्व नामक शीर्षक में 'सर्वस्व त्यागी भामाशाह वाले हेडिंग के अंबर में दिया गया है। शाह कुन्दनजी के सवाईरामजी और अंबालालजी नामक २ पुत्र हुए । भम्वालालजी की स्थितिस समय बहत साधारण रह गई थी। अतएव आपने प्रारम्भ में दुकानदारी की। पश्चात मापने उमरावों एवम् सरदारों की वकालत का काम करना प्रारम्भ किया। इसमें आपको बहुत सफलता रही। यही नहीं बल्कि इन्हीं उमरावों में से एक साल राज से भापको चोकदी नामक एक गाँव जागीर में मिला जो भाज भी आपके वंशजों के पास है। भापके समय में पुश्तैनी तिलक में सम्मान का फिर सगड़ा हुआ। इस बार भी महाराणाजी की ओर से फैसला होकर उस परवाने की पाबन्दी करवाई गई। भापका संवत् १९७६ में स्वर्गवास होगया। आपके तीन पुन हुए जिनके नाम क्रमशः बहुतलालजी, अमरसिंहजी और मनोहरसिंहजी हैं। इनमें से अनरसिंहजी स्वर्गवासी होगये। बहुतलालजी मान कर अपने पिता जी के स्थान पर वकालत को करते हैं । आपके भाई भी वकालत करते हैं ।आप लोग मिलनसार सज्जन हैं। बहुतलालजी के कालूलालजी और छगनलालजी नामक २ पुत्र है। कालूलालजी वकालत करते हैं। छगनलालजी पुलिस ट्रेनिंग पास करके प्रेक्टिस कर रहे हैं। मनोहरलालजी रोशनसिंहजी और जसवन्तलालजी नामक दो पुत्र हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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