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________________ बन्दा मेहता रखता है। अपने जीवकाल में इस चतुर मुत्सुद्दी ने जोधपुर के राजकीय प्राङ्गण में भांति २ के खेल खेले, और अपने व्यक्तित्व का जबर्दस्त प्रदर्शन किया। मेहता अखैचन्दजी का खानदान, जोधपुर ___ मेहता अखैचन्दजी के प्रपल व्यक्तित्व और उनकी राजनीति चतुरता का दर्शन उस समय से होता है जब कि संवत् १८१९ में भीवसिंहजी जोधपुर के राजा बन गये और मानसिंहजी को जालौर दुर्ग में आश्रय लेना लड़ा। इस दुर्ग में मानसिंहजी को बहुत दिनों तक घिरे रहना पड़ा जिससे उन्हें वहाँ अन्न और जल का बड़ा कष्ट होने लगा। ऐसे समय में आहौर के ठाकुर अनारसिंहजी के द्वारा मेहता अखैचन्दजी का मानसिंहनी से परिचय हुआ और इन्होंने मानसिहजी को उस महान् विपत्ति के समय में अन्न और द्रव्य की बहुत सहायता पहुँचाई और उनकी विश्वास पात्रता प्राप्त की। जब यह बात जालौर पिरधेरा देने वाले भण्डारी गंगारामजी और सिंघवी इन्द्रराजजी को मालूम हुई तो उन्होंने मेहता अखैचन्दजी की पकड़ने की बहुत कोशिश की, मगर अखैचन्दजी अत्यन्त चतुराई पूर्वक इनसे बचते रहे । इसके पश्चात् जब महाराज भीमसिंहजी का देहान्त हो गया, और उनकी जगह पर सब मुस्सुदियों ने महाराज मानसिंहजी को ही जोध. पुरका राजा बनाया उस समय महाराजा मानसिंहजी. ने मेहता अखैचन्द जी को मोतियों की कंठी, कड़ा मन्दील, सिरोपाव तथा नीमली नामक गांव जागीर में बख्श कर इनका सम्मान किया इसी साल मालाई नामक और एक गांव इनके पट्टे दुआ। इसके पश्चात् इन्होंने अपने व्यापार को बढ़ाने की ओर लक्ष दिया, जिसमें आपने लाखों रुपये की सम्पति उपार्जित की । यह वह समय था जब सिंधवी इन्द्रराजजी, भण्डारी गंगारामजी, मुणोत ज्ञानमलजी और मेहता अखैचन्द जी का सितारा पूरी जाहोजलाली पर था । इन्ही दिनों इन्होंने जालौर गढ़ की तलहटी में जागोड़ी पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया । संवत् १८६३ में जब मारवाड़ के कई सरदार धोकसिंहजी का पक्ष लेकर महाराज मानसिंह से बागी हो गये और जयपुर तथा बीकानेर की सहायता से मारवाड़ में धोकलसिंह की दुहाई फेर दी, उस महान् सङ्कट के समय में भी मेहता अखैचन्दजी ने राज को बहुत बड़ी आर्थिक सहायता पहुँचाई। इससे प्रसव होकर महाराज मानसिंहजी ने कई रुक दिये, जिनका उल्लेख इस ग्रन्थ के राजनैतिक महत्व नामक शीर्षक में दिया जा चुका है । संवत् १८६६ में इन्हें पालकी सिरोपाव तथा खास रुक्का इनायत हुआ। संवत् १८६७ में इनके पुत्र लक्ष्मीचंदजी के विवाह के समय दरबार इनकी हवेली पर पधारे और इन्हें कड़ा, दुशाला, सिरपंच, कण्ठी और बीस हजार रुपये प्रदान किये ।। संवत् १०६४ से १८७२ तक मारवाड़ में सिंघवी इन्द्रराजजी और मेहता अलैचन्दजी दोनों का
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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