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________________ पोसवाल जाति का इतिहास स्वर्गवासी हो जाने से सेठ थानमलजी ने सुगनमलजी के नाम पर सेठ जवाहरमलजी लूणिया के पुत्र इन्द्र. मरूजी लूणिया को अजमेर से दत्तक लिया। इस समय आप ही इस फर्म के मालिक है। इन्द्रमलजी लुणिया बड़े सज्जन, उदार और विनयशील युवक हैं। आपके हृदय में भोसवाक जाति की उन्नति की हरदम आकांक्षा रहती है । हैदराबाद में मारवाड़ी लोगों के उतरने की कोई सुविधा न होने से आपने अपने दादाजी के स्मारक में एक बहुत विशाल धर्मशाला बनवाई । जिसमें मुसाफिरों के ठहरने की सभी सुविधाओं का प्रबन्ध है। अभी आपने अपनी यात्रा में बहुतसा अन्य परोपकारार्थ खर्च किया है। भजमेर की ओसवाल कान्फ्रेंस में भी आपने बहुत दिलचस्पी बताई। ओसवाल समाज को आपसे भविष्य में बहुत आशा है। आपकी फर्म हैदराबाद रेसिडेंसी में सरदारमल सुगनमल के नाम से बैंकिंग व जवाहरात काम्यापार करती है । हैदराबाद में यह खानदान बहुत प्रतिष्ठा सम्पन्न है। लूणिया सरूपचंदजी का परिवार, अजमेर हम ऊपर कह चुके हैं कि लुणिया सरूपचन्दजी फलोदी में निवास करते थे। इनके हेमराजजी, तिलोकचन्दजी तथा करमचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए। ये तीनों भ्राता फलोदी के बड़े समृद्धिशाली साहुकार माने जाते थे। यह परिवार फलोदी से बडू ( मारवाड़) गया, तथा वहाँ कारवार करता रहा । वहाँ से बगभग १८५० में व्यापार के निमित्त सेठ तिलोकचन्दजी लूणिया गवालियर गये, जिनका विशेष परिचय मीचे दिया जारहा है। लूणिया हेमराजजी का परिवार भाप तिलोकचन्दजी लुणिया के बड़े भाता थे। बहू से आप किस प्रकार अजमेर आये, इसका क्रम पर इतिहास उपलब्ध नहीं है। पर इनके समय अजमेर में लूणिया वंश का सितारा बड़ी तेजी पर था। आपके छोटे भाई लूणिया तिलोकचन्दजी के खानदान ने बहुत बड़े २ कार्य किये। लूणिया हेन. रामजी के पश्चात् क्रमश, नगराजजी, रूपराजजी और पूनमचन्दजी हुए। लूणिया पूनमचन्दजी धनरूपमलजी और जीतमलजी नामक २ पुत्र हुए। संवत् १९६३ में पूनमचन्दजी तथा धनरूपमणी का प्लेग में एक साथ स्वर्गवास हो गया । जीतमलजी लूणिया-आप का जन्म संवत् १९५२ में हुआ। आपके बाल्यकाल में ही आपके पिता जी तथा बड़े भ्राता स्वर्गवासी होगये थे। अतएव आपका शिक्षण आपके भोजाइजी के संरक्षण में हुआ। भाप एफ. ए• तक पढ़ाई करके सन् १९१५ में इन्दोर गये तथा सेठ हुकुमचन्दनी के प्राइवेट सेक्रेटरी के
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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