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________________ मा सेठ चांदमलजी लूणिया के पुत्र दीवान बहादुर सेठ थानमलजी कूणिया थे । आपका जन्म संवत् १९०७ की आसोज सुदी १३ को हुआ था । आप संवत् १९३३ में भजमेर से किसी कार्यवश हैदराबाद आये और यहाँ की अनुकूल स्थिति को देखकर यहीं पर अपनी दुकान स्थापित की। आपने यहाँ पर जवाहरात का व्यापार आरम्भ किया। इस व्यवसाय में आपने अतुल सम्पत्ति, इज्ज़त और पश प्राह किया । कुछ ही समय में आप यहाँ के नामो रईसों में गिने जाने को । स्वयं निजाम महोदय की भी आप पर बहुत कृपा रही। करीब ६ वर्षों तक तो सेठ साहब रोज निजाम महोदय से मुलाकात करने जाया करते थे । आपकी सेवाओं से प्रसन्न होकर निजाम सरकार ने सन् १९१३ में आपको "राजा बहादुर” 1 का सम्माननीय खिताब प्रदान किया तथा घरू खर्च के माल के लिए कस्टम ड्यूटी भी माफ दी थी । इसी वर्ष भारत गवर्नमेंट ने भी आपको "शब बहादुर” का खिताब प्रदान किया । सन् १९१९ में आपको भारत गवर्नमैंट ने “दीवान बहादुर” के पद से सुशोभित किया । इसके अतिरिक्त बीकानेर दरबार मे भी आपको दोनों पैरों में सोना, ताजीम, हाथी, पालकी और छड़ी का सम्मान प्रदान किया। जोधपुर और उदयपुर से भी आपको सिरोपाव और बैठक का सम्मान प्राप्त था। जोधपुर में आपको भाभी कस्टम ब्यूटी माक थी । मैसूर, भौपाल, इन्दौर तथा और भी बड़ी २ रियासतों में आपका पूरा २ मान था। आपको दिल्ली दरबार में भी बैठक दी गई थी। आपका हैदराबाद के मारवादी समाज में बहुत बड़ा मान था । इस समाज में करीब १६ वर्षों से धड़े पड़े हुए थे जिन्हें आपने बहुत कोशिश करके सुलझाया। केवल राजकीय, सामाजिक और व्यापारिक मामलों में ही आप दिलचस्पी लेते थे सो बात नहीं । प्रत्युत आप धार्मिक मामकों में भी खूब लक्ष्य रखते थे । आप स्वयं बड़े धार्मिक पुरुष थे। आपने केशरियाजी में एक धर्मशाला और मल्लिनाथजी में एक मंदिर बनवाया । हैदराबाद की दादावाड़ी के रास्ते में एक सड़क बनवाई। आप स्वर्गवासी होने के पूर्व एक वसीयतनामा कर गये जिसके अनुसार आपके नाम पर करीब तीस चालीस हजार रुपये की एक विशाल धर्मशाला हैदराबाद में बनवाई गई है। तथा श्री राजगिरीजी का मार्ग ठीक कराने में भी आपके नाम पर आपके पौत्र इन्द्रमलजी लूणिया ने १०००) प्रदान किया है। सेठ साहब ने मो वसीयत की उसमें आपने अपने मौसर करने की साफ मनाई लिखी है जिससे आपकी समाज सुधारकता का सहज ही पता लग आता है। इस प्रकार यशस्वी जीवन व्यतीत करते हुए माह सुदी १ संवत् १९४९ में आपका स्वर्गवास हो गया । आपके चार पुत्र हुए मगर देव दुर्वियोग से चारों का आपकी विद्यमानता में हो स्वर्गवास होगया। इनमें सुगनमज्जी लूनिया तेजस्वी और प्रभावशाली युवक थे। हैदराबाद की भोसवाल समाज में आपका बस मान था। आप निजाम सरकार के ऑनरेरी सेक्रेटरी भी थे। चारों पुत्रों के अपनी विद्यमानता में ३३५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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