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________________ पासवान जाति का इतिहास इस प्रकार इद्धिमानी और हिम्मत के बल पर नापने अपने व्यापार को दिन दिन बढ़ाने की भोर कम समा। तथा किराने पापार में सम्पति उपार्जित कर मासामी लेनदेन का काम्यं भारम्भ किया । इस प्रकार की व्यापार को उमति की ओर अग्रसर करके भाप स्वर्गवासी हुए। सेठ मानमबजी ललवाणी-आपका जन्म १९१२ की फागुन वदी को हुमा।भाप सेठ छोटमलजी के पुत्र बाप बड़े होनहार मेधावी तथा व्यवसाय दक्ष पुरुष थे। केवल ।। साल की भल्पायु से ही आपने अपने सवसाय को सम्हाल लिया था। आपने इस दुकान के व्यापार तथा सम्मान को इतना बढ़ाया कि आपका परिवार खानदेश के मोसवाल परिवारों में मुख्य तथा क्यातिवान माना जाने लगा। आपका राज दरबार में भी अच्छा मान था। खानदेश के ओसवाल सज्जनों में आप समझदार पुरुष थे । आपने जगह, जमीन, मावदाद तथा कृषि और साहुकारी के व्यापार को ज्यादा बदाया । आपको दरवार में कुर्सी मिलती थी भआपके ३ पुत्र हुए जो अभी विद्यमान है। इस प्रकार प्रतिष्ठा पूर्ण जीवन विताते हुए संवत् १९४४ की पौर सुदी 1 को भाप स्वर्गवासी हुए। भापके पृथ्वीराजजी, जेठमलजी तथा चंदनमलजी नामक तीन पुत्र है। - ललवाणी पृथ्वीराजजी-भापका जन्म संवत १९५ की भाषाव सुदी ९ को हुभा है । भाप पांत, समझदार, म्यवहार कुशल तथा वजनदार म्पति है । फर्म के व्यापार भादि का प्रधान बोना भाप ही पर है। हरएक धार्मिक और सामाजिक कामों में भाप सहायता पहुंचाते हैं । आपके यहाँ कृषि तथा मासामी लेनदेन का व्यापार बढे प्रमाण में होता है। आपके छोटे भाता चंदनमलजी का जन्म संवत् १९६६ की पौष वदी को हुआ। भाप अपने बड़े भ्राता के साथ में व्यापारिक कामों में सहयोग के है। भाप दोनों बंधु मांडल तथा खानदेश के प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। . लखवाणी जेठमखजी-पापको जन्म संवत् १९६५ की वेशाख सुदी को हुमा । भापका मारवार दो साल पूर्व भाग मग हो गया है। इसलिए इस समय आप जेठमल मानमल के नाम से पाहुबारी तथा कृषि का काम करते है। मापने अपनी माता श्री केशरवाई के नाम से अमलनेर गर्ल स्कूल में ५ हजार रुपये दिये हैं। यह शाला भापकी मातेश्वरी के नाम से चल रही है। इसी तरह अपनी मातेश्वरी के माम से कमलाबाई शंकरलाल गर्ल स्कूल धूलिया में एक होस्टल बनवाने के लिए मापने भदाई हजार रुपये दान दिये हैं। इसी तरह भौर भी उत्तम कामों में बाप म्यष करते हैं। भाप अमळनेर म्युनिसिपेलेटो के लोकल बोर्ड की भोर से |मेम्बर है। इसी तरह कृषि (शेतकी) एसोसिएशन के मेम्बर है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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