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________________ जलवाय व्यापारिक समाज में नामांकित व्यक्ति थे । व्यापार की उन्नति के साथ २ आपने इस खानदान के सम्मान की भी विशेष उन्नति की । हुए । सेठ रतनचंदजी के आपका स्वर्गवास संवत् १९५२ में हुआ । बाद उनका कार्य्यभार उनके पुत्र सेठ आपके पुत्र से रतनचन्दजी पद्मालालजी और भागचन्दजी ने सम्भाला । सेठ पन्नालालजी ललवाणी — सेठ सतीदासजी के पश्चात् सेठ पश्चालालजी ने इस खानदान । के लेनदेन और कृषि काम को बढ़ाया। आपके छोटे भ्राता सेठ प्रेमराजजी भी आपके साथ व्यापार में भाग लेते थे। आपकी दुकान खानदेश की नामी दुकानों में मानी जाती है, तथा हरएक धार्मिक और परोपकारी कायों में यह परिवार उदारता पूर्वक भाग लेता है। सेठ पन्नालालजी का स्वर्गवास संवत् १९८२ की कार्त्तिक बदी ३ को तथा प्रेमराजजी का स्वर्गवास लगभग संवत् १९७७ में हुआ । आप दोनों बंधुओं के कोई संतान नहीं थी, अतएव सेठ पद्मालालजी के यहाँ सरूपचन्दजी कालू (जोधपुर) से और प्रेमराजजी के यहाँ भागचंदजी तापू से दत्तक लाये गये । इस समय सेठ सरूपचंदजी तथा भागचंदजी ललवाणी अपना अपना स्वतन्त्र कार्य्यं सम्हालते हैं । श्री सरूपचंदजी - आप बड़े होशियार तथा धनिक व्यक्ति हैं। सार्वजनिक व धार्मिक काम में आप उदारता पूर्वक भाग लेते रहते हैं । आपके यहाँ कृषि लेनदेन और साहुकारी का व्यापार होता है । श्री मागचंदजी — आप भी शिक्षित एवं कार्य्यं चतुर सज्जन हैं । आपने कुछ समय पूर्व गाँव में एक फर्म स्थापित की है उस पर अनाज की आढ़त व बैकिंग का कारवार होता है। जलगाँव में आप प्रतिष्ठा सम्पन्न व्यापारी माने जाते हैं तथा हर एक सार्वजनिक काम में हिस्सा लेते रहते हैं । यह परिवार खानदेश के ओसवाल समाज में बड़ी ऊँची प्रतिष्ठा रखता है तथा इस प्रांत के प्रधान धनिक परिवारों में माना जाता है। इस परिवार के पुरुष श्वेताम्बर स्थानक वासी भाग्नाप मानने वाले हैं। ललवाणी मानमलजी छोटेमलजी का परिवार, मांडल ऊपर लिखा जा चुका है कि सेठ मोटाजी के तीसरे पुत्र तेजमलजी थे। उनके पुत्र प्रेमराजजी हुए। सेठ प्रेमराजजी ललवाणी के छोटमलजी, पीरचंदजी तथा नगराजजी नामक ३ पुत्र हुए। ये तीनों भ्राता लगभग १०० साल पहिले व्यापार के लिये मांडल-खानदेश में आये । सेठ टमलजी ललवाणी - आपने थोड़े समय तक म्यालोद में फकीरचंदनी खींवसरा के यहां सर्विस की । पश्चात् आप मांडल आये और यहां बहुत छोटे प्रमाण में किराने की दुकानदारी शुरू की । ८१ ૩૨૧
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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