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________________ सेठ लक्खीचन्दजी ललवाणी आप सेठ रामचन्दजी ललवाणी के सबसे छोटे पुत्र थे। जिस प्रकार कलमसरा के परिवार की व्यापार वृद्धि का श्रेय सेट सतीदासजी तथा पनालालजी को है उसी प्रकार जामनेर के व्यवसाय की उन्नति का प्रधान श्रेय सेठ रामचन्द्रजी तथा लक्खीचंदजी को है। सेठ लक्खीचन्दजी ने जामनेर आने के बाद १५सालों तक अपने पिताजी की देखरेख में व्यवसाय कार्यं सम्हाला । अतएवं आप पर उन की व्यव साय चतुरता, कार्य्यं तत्परता तथा बुद्धिमत्ता आदि गुणों का अच्छा असर हुआ। कहना नहीं होगा कि आपने अपने पिताजी के बाद इस दुकान के व्यापार में तथा कृषि कार्य में उत्तरोत्तर तरक्की की और धीरे २ आप सारे खानदेश में मशहूर व्यक्ति गिने जाने लगे । भापने अपना व्यवसाय बम्बई में भी आरम्भ किया । इन दोनों स्थानों पर यह फर्म लाखों रुपयों का व्यापार करती थी। इस प्रकार प्रतिष्ठामय जीवन विताते हुए संवत् १९६३ के भादवावदी १४ को आपका देहान्त हुआ। आपके दाह संस्कार के लिये १५ मन चंदन और १० सेर कपूर प्रथम ही बम्बई से मँगा रक्खा था। इन सुगन्धित वस्तुओं से आपका दाह संस्कार किया गया। आपने अपने स्वर्गवासी होने के समय ४ लाख रुपया अपने रिश्तेदारों तथा कुंटुम्बियों को बाँटे । आपके यहाँ श्री राजमलजी ललवाणी मूडी (अमलनेर) से दत्तक आये । सेठ राजमलजी ललवाणी आपका विशेष परिचय इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में दिया गया है। कहना न होगा कि आपका व्यक्तिगत जीवन अनेकानेक विचित्रताओं का प्रदर्शन है । आपका जन्म संवत् १९५१ की वैशाख सुदी ३ को हुआ । आपका वाल्यकाल बहुत ही साधारण स्थिति में व्यतीत हुआ, बहुत छोटी उम्र में ही आपको बड़े भयंकर आर्थिक कष्टों का सामना करना पड़ा। मगर उस कठिन स्थिति में भी आपका उत्साह और आपकी कर्म वीरता आपके साथ रही । जैसा कि उस समय की घटनाओं को पढ़ने से पाठकों को अपने आप ज्ञात हो जायगी । उसके पश्चात् आपके भाग्य ने एक जोर का पलटा खाया और अकस्मात आप अत्यन्त दीन स्थिति से उठ कर श्रीमन्त स्थिति में आगये, अर्थात् जामनेर के सेठ लक्खीचन्दजी के यहाँ आप दत्तक आगये । मगर एक दम इतना बड़ा परिवर्तन होजाने पर भी आपके अदम्य उत्साह, सादगी और कर्मवीरता में रत्ती भर भी अन्तर न आया । भाग्य लक्ष्मी की इस मुसकराहट के समय में भी आप अपने आपको तनिक भी न भूले। इस स्थान पर आने पर आपकी सारी शक्तियां अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊँची उड़कर सार्वजनिक और जातीय कार्यो की ओर प्रवाहित हुई और भापके हाथों से कई बड़े बड़े और ११९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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