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________________ मोसमासा बाति का इतिहास बाजी तथा प्रमालाकी नसीराबाद (भुसावल) में तथा भेरूलालजी, माणकलालजी और धोकलचन्दजी चीलगाँव (खानदेश) में न्यसाय करते हैं। . सेठ धनजी ललवाणी का परिवार 3 . मणी उत्तमचन्दजी के छोटे भ्राता धनजी सेठ पिंपडाला से कलमसरा नामक स्थान में आये और वहां उन्होंने खेती बाड़ी और दुकानदारी का व्यापार भारम्भ किया। सेठ धनजी की संतानों ने अपनी चतुराई, म्यवसाय कुशलता और दूरदर्शिता से अपने व्यापार को कलमसरा तथा जामनेर में इतनी उन्नति पर ९गया कि आपका परिवार न केवल इन स्थानों पर बल्कि सारे खानदेश प्रान्त में अपना प्रधान स्थान रखता है। ऐसे गौरवशाली परिवार के पूर्वज सेठ धनजी ललवाणी संवत् १९०० में स्वर्गवासी हुए । मापके सेठ रामचन्द्रजी ललवाणी तथा सेठ सतीदासजी ललवाणी नामक २ पुत्र हुए। सेठ रामचन्द्रजी ललवाणी का कुटुम्ब सेठ रामचन्द्रजी अपने पिताजी की मौजूदगी में ही संवत् १८९७ में कलमसरा से लगभग दस बारह मील दूर नांचनखेड़ा नामक स्थान में चले गये और वहाँ आपने अपना व्यवसाय रामचन्द्र धनजी के माम से जमाया, आपकी बुद्धिमत्ता तथा कार्य कुशलता से इस दुकान ने आस पास के सर्कल में बड़ी ख्याति प्राप्त की । जब सम्वत् १९१४ का विल्यात गदर भारम्भ हुआ, उस समय बलवाइयों की एक पार्टी ने सेठ रामचन्द्रजी का मकान लूट लिया। इससे आप को बहुत बड़ी हानि हुई। थोड़े ही समय बाद जाप अपने पुत्र पीरचन्दजी तथा लक्खीचंदजी को लेकर नांचनखेड़ा के समीप जामनेर में जहाँ इनके बड़े पुत्र हरकचन्दजी व्यवसाय करते थे; चले गये और वहाँ गल्ला और साहुकारी व्यवसाय की पुनः नीव जमाई । धीरे २ जामनेर में आपने अपने म्यापार की उन्नति की । संवत् १९२९ में आप स्वर्गवासी हुए। भापके हरकचन्दजी, किशनचंदजी, पीरचंदजी तथा लक्खीचन्दजी नामक • पुत्र हुए। इनमें पीरचन्दजी निःसंतान स्वर्गवासी हुए। सेठ हरकचन्दजी ललवाणी आपने संवत् १९०९ में जामनेर में अपना निवासस्थान कायम किया, तथा यहाँ बसमा अवसान स्थापित किया। भापके पुत्र लक्ष्मणदासजी फर्म के व्यापार को हद करते हुए लगभग संवत् १९०५ में स्वर्गवासी हुए। इनके नाम पर मोतीलालजी ललवाणी मलकापुर (बरार) द आये । भापके यहाँ सेठ मोतीलाल लछमनदास के नाम से साहुकारी लेनदेव तथा कृषि का काम होता है । जामनेर पापारिक समाज में परफर्म मच्छी प्रतिक्षित मानी जाती है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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