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________________ नाहर समाज-सेवा-तीर्थ सेवा के साथ १ आपने अपने जीवनकाल में समाज सेवा और जन-सेवा के भी कई प्रशंसनीय कार्य किये हैं। कलकत्ते की समस्त ओसवाल जाति में सं० १९८० में जो देशी और विदेशी समस्या पर द्वन्द्व चल गया था और जिस कारण वहाँ के समाज में घृणामूलक वातावरण पैदा हो गया था, उसको मिटाने के लिये आपने सी सूक्ष्म दृष्टि और बुद्धिमत्ता से कार्य किया बह बड़ा ही आश्चर्य. जनक था । वह कलह यहाँ के ओसवाल समाज की नस नस में फैल गया था और विशेषकर थलीधड़े के बड़े २ लोग इसमें बुरी तरह फँस गये थे । आप ही की बहुदर्शिता से यह क्लेश बड़ी कुशलता से निपट गया । आप अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन के प्रथम अधिवेशन अजमेर के सभापति चुने गये थे । इस अधिवेशन की बैठक सं० १९८९ में अजमेर में हुई थी । सांग्रहिक प्रवृत्ति — आप की खास विशेषता यह है कि आप प्रायः सभी वस्तुओं का संग्रह भली प्रकार करते रहे हैं । 'कुमारसिंह हाल' में 'नाहर म्युजियम' नाम से आपका जो संग्रह है, उसमें पाषाण और धातु की मूर्त्तियाँ, नाना प्रकार के चित्र, सिक्के आदि भारत के प्राचीन समय की कारीगरी के आपने अच्छे-अच्छे नमूने एकत्रित कर रखे हैं । आपका पूरा संग्रह देखने से ही आपकी संग्रह प्रियता का पता चल सकता है। कई वर्षों की कुँ कुम पत्रिकाएँ, इनविटेशन कार्ड और हिन्दी, बंगला आदि भाषाओं के साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिकाओं के मुख पृष्टों का अच्छा संग्रह है। इसी प्रकार कई विषयों पर भिन्न २ समय में प्रकाशित सूचना, हैंडबिल, निमन्त्रण पत्रादि का भी अच्छा संग्रह है। इस प्रकार जब छोटी २ वस्तुओं के संग्रह में आप इतने तल्लीन रहते हैं । तब दूसरी २ वस्तुओं का आपके पास सुन्दर संग्रह होना स्वाभाविक ही है । सांसारिक जीवन- आपके सांसारिक जीवन की कुछ घटनाएँ ऐसी महत्वपूर्ण हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के लिये वे अनुकरणीय और सामाजिक जीवन की शान्ति के लिये बहुत आवश्यक हैं। प्रथम बात यह है कि आपने अपने सब पुत्रों को उच्च शिक्षा से शिक्षित किया । पश्चात् उन लोगों के सब प्रकार से योग्य होने पर आपने अपनी विद्यमानता में सबको अलग करके उनकी साम्पत्तिक व्यवस्था भी अलग २ कर दी । समाज के अन्तर्गत माता पिता के स्वर्गवासी हो जाने पर भाई-भाई के झगड़े सब जगह देखे जाते हैं और जिस कारण समाज के बड़े बड़े घर नष्ट हो जाते हैं । इन बातों को देखते हुए आपका यह कार्य बहुत प्रशंसनीय है । सारांश यह कि आपका जीवन क्या धार्मिक, क्या सामाजिक, क्या साहित्यिक सभी दृष्टियों से उच्चादर्श है। आपके चार पुत्र हैं जिनके नाम क्रम से केशरीसिंहजी, पृथ्वीसिंहजी, विजय सिंहजी, और विक्रमसिंहजी हैं। बाबू केशरीसिंहजी - आपका जन्म सं० १९५१ में ३०३ हुआ । आपका पठन-पाठन कालेज में इंटर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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