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________________ . सुराणा जी तथा सुराणा कुशलचन्दजी के परिवार में दीपचन्दजी, हीरालालजी,रिधकरणजी, रावतमलजी, बहादुरमलजी एवम् जीतमलजी नामक पुत्र हैं। सेठ शेरमलजी सुराणा का खानदान, राजगढ़ ___ इस परिवार वाले राजगढ़ (बीकानेर-स्टेट) के निवासी श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी आम्नाय को मानने वाले हैं। इस खानदान में सेठ शेरमलजी हुए। आपके ख्यालीरामजी तथा भगवानदासजी नामक दो पुत्र हुए। इनमें से सेठ भगवानदासजी सबसे पहले राजगढ़ से कलकत्ता गये और वहाँ पर आपने कपड़े की दलाली प्रारम्भ की । आपके मुखचन्दजी तथा ख्यालीरामजी के लाभचन्दजी नामक पुत्र हुए। मुखचन्दजी भी इसी प्रकार देश से बंगाल प्रान्त में बोगरा नामक स्थान में गये और काम सीखने लगे। तदनन्तर मापने कई फर्मों पर नौकरियां की। आपकी होशियारी से मालिक लोग खुश रहे। इसके पश्चात् संवत् १९५२ में मुखचन्द खींवकरण के नाम से आपने कलकत्ते में कपड़े की फर्म स्थापित की। इसमें आपको काफी सफलता रही। आपके खींवकरणजी तथा मालन्धदजी नामक दो पुत्र हुए। सेठ खींवकरणजी ने प्रथम तो अपनी कपड़े की फर्म के काम में सहयोग लिया। और फिर कई स्थानों की दलाली की। इसके पश्चात् आपने जुहारमल सोहनलाल के नाम से जापानी तथा विलायती कपड़े का डायरेक्ट इम्पोर्ट शुरू किया जिसमें आपको काफी सफलता रही । आपके सोहनलालजी भवरलालजी व शुभकरणजी नामके तीन पुत्र हैं। इस समय सोहनलालजी दलाली करते तथा भवरलालजी सोहनलालजी सुराणा " क्रास स्ट्रीट की कपड़े की दुकान का काम देखते हैं। बाबू मालचन्दजी भी इस समय स्वतन्त्र दलाली करते हैं। सेठ भूरामल राजमल सुराणा, जयपुर यह सुराणा खानदान बादशाही जमाने से देहली में जवाहरात का काम काज करता था। इस वंश में सुराणा मोतीलालजी के पूर्वज १५० वर्ष पूर्व जयपुर आये । सुराणा मोतीलालजी के रंगलालजी, जवाहरलालजी, बख्वावरमलजी तथा हीरालालजी नामक ४ पुत्र हुए। इन चारों भाइयों में से रंगलालजी के पुत्र ताराचन्दजी व हरकचन्दजी हुए, जवाहरलालजी के भूरामलजी, चौथमलजी तथा बख्तावरमलजी के पुत्र लालचन्दजी हुए। इनमें हरकचन्दजी के नाम पर भूरामलजी दत्तक दिये गये। सुराणा हरकचंदजी के समय से इस खानदान में पुनः जवाहरात के व्यापार में उन्नति हुई। २११
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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