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________________ मोसवाल जाति का इतिहास खानदान की बहुतसी जमीन जायदाद थी और अब भी इस खानदान के पूर्वजों की "बाबा बैरागी" नाम: समाधी बनी हुई है, जहाँ पर माज इस खानदान के बालकों का मुण्डन संस्कार होता है। इस खानदान का कसेल में भावड्यानी नामक विशाल मकान बना हुआ है। कसेल से करीब १५० वर्ष पहले इस खानदान के पूर्वज लाला नन्हूमलजी जण्डियालागुरु में आकर बसे और तभी से आपका परिवार यहीं पर निवास कर रहा है। यहाँ के गुरुओं ने आदर सहित आपको अपना साहकार बनाया और बहुत सी जमीन व जायदाद प्रदान की। लाला नन्हूमलजी के लाला देवीसहायजी नामक एक पुत्र हुए। लाला देवीसहायजी के लाला भवानीदासजी, गुलाबरायजी तथा महताबरायजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें से यह परिवार लाला गुलाबरायजी का है। आप बड़े धार्मिक और शांतिप्रिय सजन थे। आपके लाला परमानन्दजी नामक पुत्र हुए। आप बड़े धार्मिक सज्जन थे। आपके समय में इस खानदान के सब भाई अलग अलग हो गये। अतः आपको सब कारबार अकेले ही करना पड़ता था। आपका संवत् १९३५ में स्वर्गवास हो गया है। आपके लाला मेहरचन्दजी नामक पुत्र हुए। लाला मेहरचन्दजी का जन्म संवत् १९०७ में हुआ। आप भी धर्मध्यानी व साधु संतों की सेवा में लगे रहते थे। आपका संवत् १९८५ में स्वर्गवास हुआ। आपके दौगरमलजी, राय साहब काला टेकचन्दजी, मेतरामजी एवं नन्दलालजी नामक चार पुत्र हुए। .. ___ लाला दौगरमलजी का जन्म संवत् १९३० में हुआ। आपने अल्पायु से ही व्यापार में हाथ डाल दिया था। आप बड़े व्यापार कुशल और मशहर व्यक्ति थे। आपका स्वर्गवास संवत १९७९ में घोदे से गिरने के कारण हो गया। आपके छः पुत्र हैं जिनके नाम मुलखराजजी, हंसराजजी, देशराजजी, बंसीलालजी, रोशनलालजी और माणकचन्दजी है। राव साहब लाला ठेकचन्दजी का जन्म संवत् १९३८ में हुआ। आप इस खानदान में बड़े नामी और प्रसिद्ध व्यक्ति हैं । आपकी समाज सेवा सारे पंजाब में प्रसिद्ध है। आपने २१ फरवरी सन् १९०९ में पंजाब की सुप्रसिद्ध स्थानकवासी जैन सभा को स्थापना की और आप ही उसके जनरल सेक्रेटरी हुए। इसका प्रथम अधिवेशन भी जण्डियाले में हुआ। उसी साल जण्डियाले में एक गौशाला की स्थापना हुई, जिसके प्रधान आप ही बनाये गये और करीब २४ वर्ष तक यह संस्था आपके नेतृत्व में चलती रही। सन् १९१० में आप जण्डियाले को म्युनिसीपालिटी के कमिश्नर चुने गये और अभी तक उसी स्थान पर कायम हैं। सन् १९१० में मेम्बर होने के कुछ ही दिनों पश्चात् आप म्यु० पै० के व्हाइस प्रेसिडेण्ट चुने गये। उसके बाद बहुत समय तक भाप उसके ऑनरेरी सेक्रेटरी और सन् १९२१ से
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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