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________________ आसवाल जाति का इतिहास कोठारी परिवार चूरू (बीकानेर स्टेट) इस परिवार के लोग कई वर्षों से यहीं निवास कर रहे हैं। इस खानदान में सेठ हजारीमलजी बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए। आपने अपनी व्यापार कुशलता से बहुत उन्नति की। आपके सेठ गुरुमुखरायजी, सेठ सागरमलजी और सेठ सरदारमलजी नामक तोन पुत्र हुए। सेठ हजारीमलजी का स्वर्गवास संमत १९३५ में होगया। आजकल आपके तीनों पुत्रों का परिवार स्वतन्त्र रूप से म्यापार कर रहा है। सेठ गुरुमुखरायजी का परिवार-सेठ गुरुमुखरायजी का जन्म संवत् १८९६ में हुआ संवत १९३५ में जबकि आप तीनों भाई अलग २ होगये तबसे आपने अपनी फर्म का नाम मेसर्स हजारीमल गुरुमुखराय रक्खा । इस फर्म में आपने बहुत उन्नति की। आपका ध्यान धार्मिक कार्यों की ओर भी अच्छा रहा । आपका स्वर्गवास संवत् १९५८ में हो गया। आपके तीन पुत्र हुए। जिनके नाम क्रमशः सेठ तोला. रामजी, शोभाचन्दजी और जवरीमलजी थे। इनमें से दूसरे एवम् तीसरे पुत्र सेठ सागरमलजी के यहाँ दत्तक गये। सेठ तोलारामजी का जन्म संवत् १९२५ का है। आप शुरू से ही बड़े मिलनसार, सादे और धार्मिक वृत्ति के सजन है। आपका विशेष समय धर्म ध्यान ही में व्यतीत होता है। आप तेरापंथी संप्रदाय के अच्छे जानकार हैं। आपका यहाँ की समाज में बहुत नाम एवम् प्रतिष्ठा है। आपके चिरंजीलालजी, सोहनलालजी, माणकचन्दजी, श्रीचन्दजी और हुलासचंदजी नामक पाँच पुत्र हैं। इनमें से बड़े पुत्र चिरंजीलालजी बहुत समय से अलग हो गये हैं। शेष सब लोग शामिल ही न्यापार करते हैं । भापका व्यापार केवल हुंडी, चिट्ठी और ब्याज का है। . सेठ सागरमलजी का परिवार-सेठ सागरमब्जी का जन्म संवत् १८९८ में हुआ। आप धार्मिक प्रकृति के महानुभाव थे। आप जैन शास्त्रों के अच्छे जानकार कहे जाते थे। आपका संवत् १९६० में स्वर्गवास होगया । आपके कोई पुत्र न होने से सेठ जवरीमलजी दत्तक लिये गये। मगर छोटी अवस्था में ही आपका स्वर्गवास होगया । आपके भी कोई पुत्र न होने के कारण आपके छोटे भाई शोभाचन्दजी दत्तक आये। आप बुद्धिमान और होशियार व्यक्ति थे। आपका भी संवत् १९६२ में स्वर्गवास हो गया। आपके दो पुत्र सेठ सूरजमलजी और सेठ मालचन्दजी हुए । इनमें से सूरजमलजी अपने पिताजी के एक साल पश्चात् ही स्वर्गवासी हो गये । वर्तमान में इस परिवार में सेठ मालचन्दजी है। सेठ मालचन्दजी बड़े सरल, और उदार प्रकृति के व्यक्ति हैं। आपको विद्या से बड़ा प्रेम है। भाप बीकानेर स्टेट की असेम्बली के मेम्बर हैं। आपकी सेवाओं से प्रसन्न होकर बीकानेर दरबार में आपको
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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