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________________ कोठारी संवत् १९५७ में भाप स्वर्गवासौ हुए। आपके नाम पर सेठ हजारीमलजी के पौत्र फलमलजी खर वंडी से दत्तक आये। इनका संवत् १९७० में शरीरान्त हुआ। आपने दारहा में संवत् १९६० में जीनिंग फेक्टरी खोलो। इस समय आपके पुत्र कुंदनमलजी विद्यमान हैं, आप भी यहाँ के प्रतिष्ठित सज्जन हैं। आपके यहाँ वख्तावरमल फलमल के नाम से जमीदारी और जिनिंग फेक्टरी का कार्य होता है। कोठारी जवाहरमलजी का परिवार-कोठारी जवाहरमलजी के जीतमलजी, चांदमलजी तथा सागर मलजी नामक ३ पुत्र हुए। सन् १८५७ के बलवे के समय कोठारी जीतमलजी और सागरमलजी मारवाड़ की ओर से फौज लेकर बागियों को दबाने भेजे गये थे। तत्पश्चात् कोठारी जीतमलजी बहुत समय तक भानपुरा ( इन्दौर स्टेट ) में व्यापार करते रहे, वहाँ से बीमार होकर आप कुचेरा चले गये। जहाँ संवत् १९४७ में स्वर्गवासी होगये। इनके पुत्र नथमलजी निसंतान स्वर्गवासी हुए। कोठारी चांदमलजी के राजमलजी तथा दानमलजी नामक २ पुत्र थे । कोठारी राजमलजी संवत् १९४० में अपने बाबा वख्तावरमलजी के बुलाने से कलकत्ता होते हुए दारता आये। संवत् १९८५ में शत्रुजयजी में आप स्वर्गवासी हुए। वर्तमान में आपके पुत्र तेजराजवी, धनराजजी और देवराजजी सेठ राजमल तेजराज के नाम से जमीदारी और लेने देन का काम काज करते हैं । दानमलजी के पुत्र मुकुन्दमलजी तथा घासीमलजी हैं। इनमें घासीमलजी दत्तक गये हैं। इसी तरह इस परिवार में शिवदानमलजी के पुत्र भागचन्दजी खरवंडी में और हीराचन्दजी के पुत्र लालचन्दजी, घासीमलजी, नेमीचन्दजी दारता में रहते हैं। नेमीचन्दजी मेट्रिक में पढ़ते हैं। सेठ अगरचन्द जीवराज कोठारी (रणधीरोत ) डिगरस ( यवतमाल ) इस परिवार का मूल निवास स्थान समेल (जोधपुर स्टेट ) है। वहाँ से लगभग १५० साल पूर्व यह परिवार व्यापार के निमित्त यवतमाल डिस्ट्रिक्ट के डिगरस नामक स्थान में आया। सेठ अगरचन्दजी का लगभग ७० साल पूर्व स्वर्गवास हुआ। इनके पुत्र कोठारी जीवराजजी ने इस दुकान के व्यापार और सम्मान को बहुत बढ़ाया। संवत् १९८० के माघ मास में आप स्वर्गवासी हुए। __वर्तमान में सेठ जीवराजजी कोठारी के पुत्र शिवचन्दजी और लोमचन्दजी कोठारी विद्यमान है, आपकी फर्म डिगरस के व्यापारिक समाज में नामांकित मानी जाती है। शिवचन्दनी कोठारी समझदार तथा प्रतिष्ठित सज्जन हैं। आपके छोटे भाई लोमचंदजी नागपूर में इंटर में अध्ययन करते हैं। आपकी दुकान पर चांदी सोना तथा कृषि का काम काज होता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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