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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास सुदी २ को आपका स्वर्गवास हुआ। आपके रूपचन्दजी खींवराजजी और बभूतमलजी नामक ३ पुत्र हुए, इनमें खींवराजजी, हरकचन्दजी के नाम पर दत्तक गये । . संवत् १९३७ में कोठारी हरकचन्दजी तथा रूपचन्दजो मद्रास गये और वहाँ इन्होंने अपने नाम से किराना तथा मनीहारी का थोक व्यवसाय आरंभ किया । हरकचन्दजी संवत् १९६७ में स्वर्गवासी हुए । कोठारी रूपचंदजी को सिरोही दरबार महाराव स्वरूपसिंहजी ने संवत् १९०३ में २४ वीधा ६ विस्वा का बगीचा मय कुएं के इनायत किया; तथा “सेठ" की पदवी दी। और दो घोड़ों की बध्वी और मोम रखने की इज्जत वख्शी । संवत् १९८४ के वैशाख में आप बीमार हुए, तब दरबार इनकी साता पूछने इनकी हवेली पर पधारे। इसी मास की वेशाख वदी ७ को इनका स्वर्गवास हुआ । आपके मुखराजजी, मेनमलजी, जुहारमलजी, और मोतीलालजी नामक ४ पुत्र हुए। इनमें पुखराजजी का स्वर्गवास हो गया है और शेष विद्यमान हैं। कोठारी खींवराजजी के पुत्र कुंदनमलजी मौजूद हैं। - कोठारी नेनमलजी स्त्रीचिया का जन्म संवत १९४९ में हुआ। आप शिवगंज और सिरोही स्टेट के प्रसिद्ध धनिक साहुकार हैं। स्टेट से आपको “सेठ" की पदवी प्राप्त है । संवत् १९४९ में आपने बम्बई में जवाहरमल मोतीलाल के नाम से दुकान की है। मद्रास के गोड़वाड़ समाज में आपकी फर्म प्रधान है। शिवगंज, बम्बई, मद्रास आदि में आपकी स्थाई सम्पत्ति है। आपके पुत्र जीवराजजी और भेरूमलजी हैं। इनमें भेरूमलजी, पुखराजजी के नाम पर दत्तक गये हैं । सुकनराजजी के पुत्र अमृतराज जी और बाबूलालजी हैं। सेठ कुन्दनमलजी और तेजराजजी कोठारी (रणधीरोत ) दारह्वा ( यवतमाल ) इस परिवार के पूर्वज कोठारी हरीसिंहजी, शेरसिंहजी की रीयाँ ( मेड़ते के पास ) रहते थे। इन के पुत्र कोठारी निहालचन्दजी संवत् १८९५ के लगभग बराड़ में आये । और इस प्रान्त के सूबेदार बनाये गये । आपका खास निवास अमरावती में रहता था। आपके छोटे भ्राता बहादुरमलजी के गाढमलजी, जवाहरमलजी, हिन्दूमलजी तथा सरदारमलगी नामक , पुत्र हुए । आप लोग देश में ही रहते थे। ___ कोठारी सरदारमलजी का परिवार-मारवाड़ से सेठ गाढमलजी के पुत्र हजारीमलजी खरवंडी (अहमद नगर ) गये और सरदारमलजी के पुत्र वख्तावरमलजी दारता ( बरार ) आये । यहाँ आकर सेठ वख्तावरमलजी ने महुवे के बड़े २ कंट्राक्ट लिये, और इस धन्धे में अच्छी सम्पत्ति उपार्जित की । दारह्वा तालुके के आप प्रतिष्ठित सज्जन थे। आपको घोड़े, ऊँट, सिपाही, आदि रखने का बहुत शौक था ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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