SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओसवाल जाति का अभ्युदय कर देने के लिए कहा । बादशाह ने फिर उन्हें अपने लिये कुछ मांगने को कहा । इस पर भाचार्य ने कहा कि हमारे पर्युषण पर्व में आठ दिन तक जींव हिंसा न होने पावे । इस पर बादशाह ने अपनी तरफ से और चार दिन मिलाकर बारह दिन के लिये समस्त साम्राज्य में हिंसा बंद करवाई और अपनी सही और मोहर के ६ फरमान अपने साम्राज्य के सब स्थानों पर भेज दिये । उसके पश्चात् समर तालाब नामक जला. शय जो उन्होंने स्वयं बड़े शौक से बनाया था आचार्य श्री के अर्पण कर दिया और वहाँ मछलियाँ मारने की मनाई कर दी । स्वयं सम्राट ने भी कभी शिकार न करने की प्रतिज्ञा ली ।* संवत् १६४० नवरोज के अवसर पर सम्राट ने आचार्य श्री को जगद्गुरु का विरुद प्रदान किया । इस अवसर पर भी सम्राट ने सारे कैदियों को छुड़वा दिये । गमर तलाव पर जाकर वहाँ के पीजरे में बंद पशुपक्षियों को मुक्त किया। ___ उसके पश्चात् बादशाह के मान्य जौहरी दुर्जनमल ने सूरिजी के पास से जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा करवाई। इसी प्रकार और भी कई स्थानों पर आपने मन्दिरों और मुत्तियों की प्रतिष्ठा करवाई । कुछ समय पश्चात् वहाँ से बिहार कर आपने संवत् १६४५ में पाटन में चौमासा किया । इस समय इनके शिष्य शांतिचं उपाध्याय ने, जो कि सूरिजी की आज्ञा से बादशाह के पास रह गये थे,सूरिजी के दर्शनार्थ जाने की इच्छा प्रकर की । तब बादशाह ने अपनी तरफ से सूरिजी को भेंट करने के लिए उनके पास निम्नलिखित फरमान भेजे । - जज़िया नामक कर को गुजरात में दूर करने का फर्मान्, पर्युषग के बारह दिनों के अलावा सब रविवार सूफी लोगों के सब दिन,ईद,के दिन, संक्रान्ति की सब तिथियाँ, अपना जन्म जिस मास में हुमा था वह सारा मास, मिहिर के दिन, नवरोज के दिन ,अपने तीनों पुत्रों के जन्म दिन, मोहर्रम महिने का दिन, इस प्रकार सब वर्ष में कुल ६ मास और दिन सारे साम्राज्य में कोई भी किसी जीव की हिंसा न करें इस प्रकार का फरमान बादशाह ने निकाल कब भेजा ! * पाइने अकबरी पृष्ट ३३० और ४०० में अकबर बादशाह कहते है कि राज्य के नियम से यद्यपि शिकार खेलना पुरा नहीं है लेकिन जीव रक्षा का ख्याल रखना उससे भी ज्यादा आवश्यक है। +कट्टर मुसलमान लेखक बदाउनी लिखता है: " In these days (991-1583 A. D.) new orders were given. The killing of animals on cartain days was forbidden, as on sundays because this day is sacred to the Sun; during the first 18 days of the month forwarding the whole month of abein (the month in which His Majesty was born) and several other days so please the Hindoos. Thus order was extended over the whole realm and capital punishment was inflicted on every on who acted against the command." -Radaoni Page. 321,
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy