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________________ बांसवाल जाति का इतिहास मानसिंहजी के पुत्र थे जिनका नाम हरनाथसिंहजी, धनराजजी, नवलसिंहजी, उज्छीरामजी रतनचन्दजी और चैनरूपजी था। इनमें से हरनाथसिंहजी के दो पुत्र हुए। इनका नाम माणकचन्दजी और बींजराजजी था। सेठबींजराजनी अपने चाचा सेठ नवलसिंहजी के नाम पर दत्तक गये। सेठ माणकचन्दजी और सेठ बींजराजजी दोनों भाइयों ने मिलकर पहले पहल कलकत्ता में मेसर्स माणकचंद हुकुमचंद के नाम से फर्म स्थापित की। इनके पूर्व आप लोग राजलदेसर की प्रसिद्ध फर्म मेसर्स खड़गसिंह लच्छीराम वेद के यहाँ साझीदारी में काम करते थे। सेठ माणकचन्दजी का परिवार सेठ माणकचन्दजी इस परिवार में प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए। आपके दो पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सेठ ताराचन्दजी (सोमजी ) और सेठ कालूरामजी था। सेठ माणकचन्दजी का स्वर्गवास संवत् १९१९ में हो गया। सेठ ताराचन्दजी-आपका जन्म संवत् १८९८ का था आप अपने पिताजी के समय में व्या पार करने लग गये थे । संवत् १९२४ में आपकी फर्म मेसर्स खड़गसिंह लच्छीराम से अलग हुई। संवत् १९३४ में आपने हुकमचन्दजी के साथ से भी अपना साझा अलग कर लिया। इस समय से आपकी फर्म का माम मेसर्स माणकचन्दजी ताराचन्द पड़ने लगा । इस पर प्रारंभ से ही भादत और कमीशन का काम होता चला आ रहा है। सेठ ताराचन्दजी इस परिवार में बड़े योग्य, व्यापार-चतुर और कुशल-व्यवसायी व्यक्ति हुए। आपने अपनी फर्म पर डायरेक्ट कपड़े का इम्पोर्ट करना प्रारम्भ किया तथा लाखों रुपयों की सम्पति उपार्जित की। आपके पास उस समय २० हजार गांठ कपड़े की हर साल आया करती थी। आपका स्वर्गवास संवत् १९१७ में हो गया। मापके दो पुत्र सेठ जयचन्दलालजी और मेघराजजी थे। सेठ कालूरामजी-आप बड़े धर्म प्रेमी सज्जन थे। आपको जैनधर्म के सूत्रों की अच्छी जानकारी थी। आपके इस समय मोहनलालजी नामक एक पुत्र हैं। आपके कोई संतान न होने से अपने भतीजे पूनमचन्दजी के पुत्र सोभागमरूजी को दत्तक लिया। संवत् १९६२ तक आप दोनों भाइयों का कारोवार शामलात में होता रहा। इसके पश्चात् अलग रूप से व्यवसाय हो रहा है। सेठ जयचन्दलालजी-आपका जन्म संवत् १९१६ में हुआ। तथा स्वर्गवास संवत् १९६२ में *आपके पिताजी के सामने ही हो गया था । आपके चार तुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः सेह पूनमचन्दजी, रिखबचन्दजी. दौलतरामजी, और सिचियालालजी हैं। आप सब लोग मिलनसार सजन हैं। भाप लोगों का व्यापार कलकत्ता में १६ कैनिंग स्ट्रीट में बैकिंग और कपड़े का होता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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