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________________ बेद मेहता भाफिसरों से सर्टिफिकेट प्राप्त हुए थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९७८ में हो गया। भापके पाँच पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः फतहसिंहजी, बहादुरसिंहजी, उमरावसिंहजी, अनोपसिंहजी और अर्जुनसिंहनी हैं। इनमें से मेहता फतेहसिंहजी का स्वर्गवास हो गया। आपके तीन पुत्र हुए जिनका नाम क्रमशः गोपालसिंहजी, मुकुमसिंहजी और ज्ञानसिंहजी हैं । इनमें से गोपालसिंहजी दत्तक गये हैं। मेहता बहादुरसिंहजी राज्य में जोधपुर वकालात का काम करते रहे । आपका स्वर्गवास हो गया। मेहता उमराव सिंहजी का ध्यान व्यापार को ओर रहा। भाप मिलनसार सज्जन हैं। मेहता अनूपसिंहजी के ५ पुत्र हैं जिनका नाम क्रमशः भगवतसिंहजी, मोहब्बतसिंहजी, जुगलसिंहजी, मोतीसिंहजी और प्रतापसिंहजी हैं। मेहता अर्जुनसिंजी के मेघसिंह नामक एक पुत्र हैं। मेहता विशनसिंहजी-आप मेहता छोगमजी के पुत्र थे। आपका जन्म संवत् १९१८ का था। आप संवत् १९३८ में महकमा माल के काम पर नियुक्त हुए। संवत् १९३६ में दिवाली के अवसर पर कपड़े में भाग लग जाने से आपका स्वर्गवास हो गया । आपके पुत्र मेहता पुसिंहजी इस समय विद्यमान है। आप पहले जयपुर वकील और फिर आबू वकील रहे । अब पाप हाकिम देवस्थान है। इस परिवार में छोटे से छोटे बच्चे तक को पैरों में सोना बना हुआ है। इस समय इस परिवारवालों की जागीर में सात गाँव हैं। वेद परिवार, रतनगढ़ इस परिवार का इतिहास बड़ा गौरव मय रहा है। बीकानेर के वेद सजन इसी घेद गौत्र के हैं। इस परिवार के पुर्व पुरुष गोपाल पुरा नामक स्थान पर वास करते थे । वहाँ से थानसिंहजी लालसर मामक स्थान पर आकर रहने लगे। थानसिंहजी के ५ पुत्रों में से हिम्मतसिंहजी नामक पुत्र रतनगढ़ से तीन मील की दूरी पर पापली नामक स्थान में आकर रहे । आपके ६ पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः जेठमलजी मयाचंदजी, पृथ्वीराजजी, मोकमसिंहजी, मदनसिंहजी, और हरिसिंहजी था। मयाचन्दजी के चार पुत्रों में बाघमलजी, भगवानदासजी, और गजराजजी निःसंतान स्वर्गवासी हो गये। चौथे पुत्र भीमसिंहजी के पाँच पुत्र मानसिंहजी, गंगारामजी, केसरीसिंहजी गुमानसिंहजी और सरदारमलजी थे। सेठ भीमसिंहजी का स्वर्गवास हो जाने पर इनकी धर्मपत्नी अपने पुत्रों को लेकर रतनगढ़ चली आई। इनमें से गुमानसिंहजी और सरदारमलजी निःसंतान स्वर्गवासी हो गये । शेष तीनों में से यह परिवार मानसिंहजी से सम्बन्ध रखता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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