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________________ श्रोसवाल जाति का इतिहास कि "ताबेदार जैसो बीकानेर की गद्दी को चाकर हे वैसो ही उदयपुर की गही को भी चाकर है। सावन्द आ बात काई रमाइजे है। , महाराव हिन्दूमलजी का स्वर्गवास संवत् १९०४ में ४२ वर्ष की अवस्था में हो गया। आपके स्वर्गवास पर महाराजा साहब ने एक खास रुका भेज कर आपकी मृत्यु पर अफ़सोस जाहिर किया। साथ ही आपके पुत्रों के प्रति सद्भावना प्रदर्शित की । आपके स्वर्गवास के एक साल के पश्चात् आपके पिता मेहता मूलचन्दजी का भी स्वर्गवास हो गया। महारावजी के स्वर्गवास के पश्चात् उनके क्रियाकर्म एवम् माह्मण भोजन का सारा खर्च महाराजा साहब ने अपने पास से किया। भापके तीन पुत्र थे। जिनके नाम क्रमशः महाराव हरिसिंहजी, राव गुमानसिंहजी और राव जसवन्तसिंहजी थे। महाराबजी को सं० १९०२ में नेठराणा नामक एक गाँव जागीर में मिला था। आपको समय २ पर यों तो बहुत से सम्मान मिले ही थे मगर ताजीम का सम्मान विशेष रूप से था। ___ सन् १९२८ में महाराजा गंगासिंहजी बहादुर ने महाराव हिन्दूमलजी के सरहही मामले में विशेष दिलचस्पी लेने एवम उसका निपटारा करने के उपलक्ष्य में उनके नाम को चिरस्थाई करने के हेतुसे हिन्दूमल कोट नामक एक कोट स्थापित किया । मेहता छोगमलजी भाप महाराव हिन्दूमलजी के छोटे भाई थे। आपका जन्म संवत् १८६९ में हुआ था। भाप बड़े बुद्धिमान और अध्यवसायी व्यक्ति थे। आप महाराजा सूरतसिंह जी के समय में कई वरसों तक हाजिर बस्ती रहे। महाराजा सूरतसिंहजी के पश्चात् महाराजा रतनसिंहनी बीकानेर की गद्दी पर बैठे। भापकी भी आप पर बड़ी कृपा रही। मेहता जी ने इसी समय कमल सदरलैंड, सर हेनरी लारेंस, सर जार्ज मरेंस आदि कई अंग्रेज रेसिडेण्टों की मातहती में रेसिडेंसी वकालात का काम किया। इन लोगों ने आपके कार्यों से प्रसव होकर कई सार्टिफिकेट प्रदान किये थे। संवत् १९०९ में जब कि सरहद्द बंदी का काम हुआ उस समय आपने इस काम को बड़ी मिहनत और खूबी के साथ करवाया। साथ ही सरहद पर होने वाले बहुत से झगड़ों का निपटारा कर. वाया। इससे कई भावाद शुवा गाँव रियासत बीकानेर में मिला लिये गये। इस काम में भापके बड़े भाता महारावजी का भी परा र हाथ था। भापके इस कार्य से प्रसव होकर महाराजा सरदारसिंहजी ने अपने गले में से कंठा निकाल कर आपको इनायत किया। संवत् १९१४ में जब कि गदर हुमा था उस समय आप बीकानेर की ओर से गदर में सरकार
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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