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________________ मंडारी रामपुरा की जनता भी आपका बहुत आदर करती थी। भाप बड़े सजन, मिलनसार, दानी तथा परोपकारी सजन थे। आपके धार्मिक विचार भी बड़े चढ़े बदे थे। आपके तीन पुत्र हुए जिनके नाम श्री कन्हैयालालजी, सुगनमलजी एवं मोतीलालजी है। इस प्रकार यशस्वी जीवन बिताते हुए अपने पुत्रों के लिए धन-जन सम्पन्न घर को छोड़ कर भाप परलोक सिधारे । श्री० कन्हैयालालजी भण्डारी श्री कन्हैयालालजी भण्डारी उन व्यक्तियों में से एक है जिन्होंने अपनी बुद्धिमानी, व्यापारकुशलता और तीव्र व्यवस्थापिका-शक्ति से अपने व्यवसाय को तरक्की पर पहुंचाया। जिन लोगों को आपके संसर्ग में रहने का अवसर प्राप्त हुभा है वे आपकी जबरदस्त व्यवस्थापिका-शक्ति से भली-भाँति परिचित हैं। इन्दौर का भण्डारी मिल भापकी इस शक्ति का बड़ा ही ज्वलन्त उदाहरण है। बह मिल जिस समय स्थापित हुभा था उस समय सभी दूर की व्यापारिक स्थिति बढ़ी डावाडोल हो रही भो और लोगों को विल्कुल आशा न थी कि यह इतनी सफलता से भागे जाकर चल निकलेगा। मगर भण्डारी कन्हैयालालजी की कार्य-शीलता तथा व्यापारिक विवेक ने इस मिक को इतनी उन्नति पर पहुँचाया कि आज व्यवस्था और सफलता की दृष्टि से यह मिस इन्दौर की सर्वप्रधान मिलों में से एक गिना जाता है और भण्डारी कन्हैयालालजी सारे भारतवर्ष के भोसवाल समाज में पहले या दूसरे नम्बर के इण्डस्ट्रियालिस्ट (Industrialist) माने जाते हैं। श्री कन्हैयालालजी का जन्म सम्बत् १९४५ में हुमा । भाप प्रारम्भ से ही व्यापारिक लाइन में बड़े प्रतिभाशाली रहे । आपने सन् १९१९ में 'स्टेट मिक्स लिमिटेड इन्दौर' को २० वर्ष के लिये ठेके पर लिया। आपने इस मिल की कम-से-कम खर्चे में अच्छी-से-अच्छी व्यवस्था की। साथ ही इस मिक के कपड़े को दूर २ के प्रान्तों में खपाने के लिये कानपुर व अमृतसर में कपड़े की दुकानें भी स्थापित को। मापने करीब छः लाख रुपये की नई मशीनरी खरीद कर इसमें राई वगैरह का काम भी शुरू कर एक नया जीवन का दिया । इस समय भी आप इस मिल की व्यवस्था कर रहे हैं। सन् १९२२ में आपने अपने पिताजी के नाम से इन्दौर में ही तीस लाख की (जी से "नन्दलाल भण्डारी मिल्स लिमिटेड” नामक एक ओर मिल खोला। जिस समय यह मिस खोला गया था उस समय की भारत की व्यापारिक स्थिति पर हम लोग प्रथम ही लिख चुके हैं। मगर मिल लाइन में तथा मशीनरी के सम्बन्ध में आपको विशेष योग्यता, व्यवस्थापिका-शक्ति और बुद्धिमानी के परिणाम स्वरूप इसमें आपको बहुत सफलता प्राप्त हुई । फलतः वर्तमान में यह मिल बहुत ही सफलता पूर्वक
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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