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________________ मोसवाल जाति का इतिहास और चार २ बार आया है ऐसी स्थिति में इन शाखाओं के सम्बन्ध में शंका होना स्वाभाविक है सम्भव है दूसरे आचायों का भी इस से मतभेद हो । मगर यह निश्चित है कि संवत् १००० के पश्चात् जो आचार्यं हुए उनमेंसे बहुतसों ने इन गौत्रों की शाखाओं तथा नवीन गौत्रों की स्थापना की । उनमें से कुछ प्रसिद्ध २ आचायों का परिचय हम नीचे देने की चेष्टा कर रहे हैं। श्राचार्य्य बप्पभट्टर आचार्य बप्पभट्टसूरि का जम्म वि० सं० ८०० में हुआ। उस समय जाबालिपुर में पड़िहार वंश का महाप्रतापी वत्सराज नाम का राजा राज्य करता था। इसने गौड़ प्रांत, बंगाल प्रांत, मालव प्रांत वगैरह दूर २ के प्रदेशों को विजय कर उत्तरापथ में एक महान साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश की थी। इसी समय में अणहिलपुर नामक एक छोटा सा ग्राम बसाकर चावड़ा वंशीय राजा बनराज ने अपना राज्य विस्तार करना प्रारम्भ किया था। इसने सारस्वतमण्डल, आनर्त और बागड़ इत्यादि आसपास के प्रान्तों पर अधिकार करके पश्चिम भारत के अन्दर एक बड़ा साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश की। सम्राट वत्सराज के नागभट्ट नामक एक पुत्र हुआ जो इतिहास में नागावलोक व आमराजा के नाम से मशहूर है । इसने अपनी राजधानी जाबालिपुर से हटाकर हमेशा के लिए कन्नौज में स्थापित की । ग्वालियर की प्रशस्ति से पता चलता है कि इस राजा ने कई देशों को जीतकर अपने राज्य में मिलाया । इसी राजा को आचार्य बप्पभट्टसूरि ने जैनधर्म का प्रतिबोध देकर जैनी बनाया। इस राजा के एक रामी afts पुत्री थी उसकी संतान ओसवाल जाति में सम्मिलित की गई, जिनका गौत्र राज कोटागर या राज कोठारी के नाम से मशहूर हुआ। इसी आम राजा ने कन्नौज में एक सौ हाथ ऊँचा जिनालय बंधवाकर उसमें आचार्य बप्पभट्टसूरि के हाथ से महावीर स्वामी की एक सुवर्ण प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई। इसी प्रकार गोपगिरि ( गवालियर) में भी इन्होंने २२ हाथ ऊँची महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की। ये आचार्य गौड ( बंगाल ) देश की राजधानी लक्षणावती में भी गये और वहाँ तत्कालीन राजा धर्म को उपदेश देकर आम राजा तथा उसके बीच की विद्रोहानि को शांत कर दिया । इन्हीं सूरिजी ने मथुरा में शैव वाक्पति नामक एक योगी को जैनी बनाया। इन्हीं के उपदेश से आम राजा ने संवत् ८२६ के करीब कनौज, मथुरा, अणहिलपुर पट्टण, सतारक नगर तथा मोढेरा आदि शहरों में जैन मन्दिर बनवाये। इसी राजा आम का पुत्र भोज राजा हुआ, जिसके दूसरे नाम मिहिर और आदिवराह भी थे । यह सम्वत् ९०० से ९५० तक गद्दी पर रहा। इसी परिवार में आगे चलकर सैकड़ों वर्षों पश्चात् सिद्धाचल का अन्तिम उद्धार कर्त्ता के २८
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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