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________________ ओसवाल जाति का अभ्युदय इत्तियों में काम कर रहे थे उनमें चमत्कारों का प्रभाष भी एक प्रधाम था । जैनाचार्यों ने जब देखा होगा कि जनता साधारण उपदेश से प्रभावित नहीं हो सकती तब संभव है उन्होंने अपने आपको चमत्कारों में निपुण किया होगा और इस प्रकार जनता के हृदय पर विजय प्राप्त करने की कोशिश की होगी । बहुत से ऐसे. समय भाते हैं जिनमें युग प्रवर्तकों को प्रचलित सनातन धर्म के विरुद्ध युगधर्म के नाम से अस्थाई व्यवस्था करना पड़ती है, संभव है उस समय के आचार्यों ने यही सोचकर चमत्कारवाद का आश्रय ग्रहण किया होगा। अब हम यह देखना चाहते हैं कि इस जाति की उन्नति और विकास के इतिहास में किन र महान् भाचार्यों ने महत्व पूर्ण योग प्रदान किया। ऐसा कहा जाता है कि शुरू २ में ओसवाल जाति के अन्दर १८ गौत्रों की स्थापना हुई थी और उसके पश्चात् इनमें से अनेक गौत्रों की और २ शाखाएँ निकलती गई । मुनि ज्ञानसुन्दरजी ने अपने ग्रंथ 'जैन जाति महोदय' में इन अठारह गौत्रों की ४९८ शाखाएं इस प्रकार लिखी हैं। (१)मूलगौत्र तातेड़-तातेड़, तोडियाणि, चौमोला, कौसीया, धावग, चैनावत, तळोवडा, नरवरा, संघवी, इंगरिया, चोधरी, रावत, मालाक्त, सुरती, जोखेका, पाँचावत, विनायका, साडेरावा, नागडा पाका, हरसोत, केलाणी, एवं २२ जातियों तातेड़ों से निकली यह सब भाई है। (२) मूलगोत्र बाफणा-बाफणा, (बहुफणा)नाहटा, (नाहाटा नावटा) भोपाला, भूतिया, भाभू, नावसरा, मुंगडिया, डागरेचा, चमकीया, चाधरी जांघडा, कोटेचा, बाला, धातुरिया, तिहुयणा,करा, बेताला, सलगणा, बुचाणि, सावलिया, तोसटीया, गान्धी, कोठारी, खोखरा, पटवा, दफतरी, गोडावत, चेरिया, बालीया, संघवी, सोनावत, सेलोत, भावडा, लघुनाहटा, पंचषया, हुभिया, टाटीया, उगा, लघुचमकीपा, बोहरा, मीठडीया, मारू, रणधीरा, ब्रोचा, पाटलीया पानुणा, ताकलीया, योद्धा, पारोळा, दुद्धिमा, बादोला, शुकनीया, इस प्रकार ५९ जातियां बाफना गोत्र से निकली हुई भापस में भाई हैं। (३) मूलगौत्र करणावट-करणावट, वागडिया, संघवी, रणसोत, भाच्छा, दावलिया, हुना, काकेचा, थंभोरा, गुदेचा, जीतोत, लाभांणी, संखला, भीनमाला, इस प्रकार करणावटों से १४ साखाएँ निकली बहसव आपस में भाई हैं। (४) मूलगौत्र बलाहा-बलाहा, रांका, बांका, सेट, सेठिया, छावत, चौधरी, काला, बोहरा, भूतैदा कोठारी रांका देपारा, नेरा, सुखिया, पाटोत, पेपसरा, धारिया, जडिया, सालीपुरा, चित्तोडा, हाका, संघवी, कागडा, कुशलोत, फलोदीया, इस प्रकार २६ साखाएं बलाहा गोत्र से निकली वह सब भाई हैं। .. (५) मूलगौत्र मोरख-मोरख, पोकरणा, संघवी, तेजारा, लघुपोकरणा, चांदोलीपा, पंगा,
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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