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________________ प्रोतबाट जाप्त का इतिहास संग्रह कर रखा है। अरेवियन और परसियन हस्त लिखित पुस्तकों का भी आपके यहाँ बहुमूल्य संग्रह है। ये ग्रन्थ पहले देहली के बादशाहों के पास थे। इनमें से कई एक पर तो उनके हस्ताक्षर भी हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त प्राचीन हिन्दू, कुशान और गुप्त काल के राजाओं के तथा मुसलमान काल के भी बहुत से सिक्कों का आपके यहाँ संग्रह है। ___आपको प्राचीन ऐतिहासिक पुरातत्व ही की तरह सार्वजनिक जीवन में भी बहुत दिलचस्पी है। सन् १९८६ में बम्बई में होने वाली जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स के विशेष अधिवेशन के आप सभापति रहे। पंजाब के गुजरान वाला गुरुकुल के छटवें वार्षिक अधिवेशन के भी आप सभापति रहे । यहाँ आपका बहुत महत्वपूर्ण भाषण भी हुआ था । . इसके अतिरिक्त आपने एक और महत्वपूर्ण कार्य किया। कवि सम्राट रवीन्द्रनाथ के शांति निकेतन बोलपुर में आपने सिंघवी जैन विद्यापीठ की स्थापना की। इस विद्यापीठ में जैन धर्म के सुप्रसिद विद्वान और पुरातत्वज्ञ श्री जिनविजयजी आचार्य का काम कर रहे हैं। जिससे इस विद्यापीठ में सोने के साथ सुगन्ध की कहावत चरितार्थ हो रही है। इस विद्यापीठ में जैन आगम ग्रंथ, जैन प्रकरण ग्रंथ, जैन कथा साहित्य, देशी भाषा साहित्य, लिपि विज्ञान, ऐतिहासिक संशोधन पद्धति, स्थापत्य विज्ञान, भाषा विज्ञान, धर्म विज्ञान, प्रकीर्ण जैन वाङ्मय इत्यादि जैन संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाले सभी विषयों की शिक्षा देने का प्रबंध किया जा रहा है। - इसी विद्यापीठ के साथ एक विशाल ग्रंथ भण्डार और जैन ग्रन्थों का संग्रह भी बनाया जा रहा है। तथा सिंघवी जैन ग्रन्थमाला के नाम से एक ग्रंथमाला भी निकलती है। जिसमें कई बहुमूल्य ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त और भी प्रायः सभी सार्वजनिक कार्यों में आप बड़े उत्साह के साथ भाग लेते रहते हैं। __आपके तीन पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः बा. राजेन्द्रसिंहजी, बा० नरेन्द्रसिंहजी और बार वीरेन्द्रसिंहजी हैं। बाबू राजेन्द्रसिंहजी-आपका जन्म संवत् १९६१ में हुआ । मापका अध्ययन बी० ५.क्लास तक हुमा। आप बड़े योग्य, बुद्धिमान और मिलनसार सज्जन है। आप के इस समय दो पुत्र हैं, जिनके नाम बा० राजकुमारसिंहजी और बाबू देवकुमारसिंहजी है। बाबू नेरन्द्रसिंहजी-आपका जन्म संवत् १९६७ में हुआ। आप कलकत्ता विश्व विद्यालय की बी० एस० सी० की परीक्षा में सन् 1 में सर्व प्रथम स्थान में उत्तीर्ण हुए । इस समय आप एम. एस. सी. पास कर खॉ में पढ़ रहे है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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