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________________ सिंघवी आपको एक पन्ने की अंगूठी भी प्रदान की थी। इस अंगूठी पर आपका खिताब सहित नाम एबम् संवत् हुआ है। वह अंगूठी अभी भी आपके वंशजों के पास विद्यमान है। आपने पैदल रास्तों से सब तीर्थस्थानों की यात्रा को और इसके स्मारक स्वरूप आपने एक डायरी भी लिखी जो हाल में मौजूद है । आपका स्वर्गवास संवत् १९४७ में हुआ। आपके कोई पुत्र न होने की वजह से आपके नाम पर सरदारशहर से चौरड़िया गौत्र के बाबू निहालचन्दनी दत्तक साये। आपका स्वर्गवास संवत् १९५८ बाबू निहालचन्दजी - आपका जन्म संवत् १९०१ में हुआ 1 आप संवत् १९०५ में अजीमगंज में दत्तक आये । आपका विवाह मुर्शिदाबाद के सेठ मगनीरामजी टांक की पुत्री से संवत् १९१३ में हुआ । आप फारसी भाषा के विद्वान और शायर थे । संस्कृत का भी आपको अच्छा ज्ञान था । प्रायः अस्वस्थ रहने के कारण आपका समय अधिकतर धर्मध्यान ही में बीता । में हुआ। आपके बाबू चन्दजी नामक पुत्र हुए । बाबू डालचन्दजी आपका जन्म संवत् १९१७ में हुआ तथा आपका विवाह संवत् १९३५ में सुर्भिदाबाद निवासी बा० जयचन्दजी वेद की पुत्री से हुआ। आप क्रेम समाज में बहुत प्रतिज्ञ सम्पन पुरुष हो गये हैं । प्राचीन जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार में, तथा जैन सिद्धान्तों के प्रचार में आपने बहुत धम माय किया । आप बड़े स्पष्ट वक्ता और अपने सिद्धान्तों पर भटक रहने वाले सज्जन थे । जिस समय कलकत्ता में जूट बेलर्स असोसिएशन की स्थापना हुई, उस समय सर्व प्रथम आपही उसके सभापति बनाये गये । चित्तरंजन सेवासदन कलकत्ता में भी आपने बहुत सहायता पहुँचाई । आपके द्वारा आपके रिश्तेदारों को भी बहुत सहायताएँ मिलती थीं । मृत्यु के समय आप कई लाख रुपये अपने रिश्तेदारों को वितरण कर गये । आप बड़े वूरदर्शी और व्यापार कुशल पुरुष थे । मेसर्स हरिसिंह निहाक चन्द नामक फर्म को आपने बहुत उन्नति पर पहुँचाया । धार्मिक विषयों के भी आप अच्छे जानकार थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९८४ में होगया । आपके एक पुत्र हैं जिनका नाम बाबू बहादुरसिंहजी हैं। बाबू बहादुरसिंहजी - आपका जन्म संवत् १९४२ के असाढ़ बदी १ को हुआ । आपका विवाह संवत् १९५४ में मुर्शिदाबाद के सुप्रसिद्ध राय लखमीपतसिंह बहादुर की पौत्री से हुआ । मगर हाली १९०७ के भाद्रपद में आपकी धर्मपत्नी का स्वर्गवास होगया। आपने हिन्दी, अंग्रेजी, बंगला आदि भाषाओं में उच्च श्रेणी की शिक्षा प्राप्त की है। आपका स्वभाव बड़ा सरक और मिलनसार है। आपको पुरानी कारीगरी का बेहद शौक है। पुरानी कारीगरी की कई ऐतिहासिक वस्तुओं का आपने अपने यहाँ बहुमूल्य संग्रह कर रखा है । महाराज छत्रपति शिवाजी जिन राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता, महादेव भादि मूर्तियों की पूजा करते थे, तथा जो बहुमूल्य पन्धे की बनी हुई हैं। उनका आपने अपने यहाँ 119 م
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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