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________________ औसवाल जाति का इतिहास देखकर संघ के गण्यमान्य व्यक्ति हाजीलॉन के पास गये। वहाँ हाजीखान ने रूपाजी बलदोटा को पहचान लिया। इसका कारण यह था कि एक बार इन्होंने अजमेर में हाजीखांन को एक बहुत बड़ी विपत्ति से बचाया था। हाजीखाँन ने इन्हें देखते ही पूछा "कहाँ जा रहे हो।" इसके प्रत्युत्तर में रूपाजी ने कहा संघ सहित तीर्थ यात्रा को जारहा हूँ। हाजीखाँ ने बदले का ठीक उपयुक्त समय समझ कर उनसे कहा यह तीर्थयात्रा मैं अपनी तरफ से करवाऊँगा। इसमें जितने भी रुपये मोहरें खर्च होंगी, सब मैं खर्च करूंगा। बहुत कुछ इनकार करने पर भी रूपाजो को हाजीखाँन की बात मानना पड़ी । हाजीखों संघ के साथ में हो लिया। बड़ी धूमधाम से श्री शत्रुजय तीर्थ की यात्रा की। एक स्वामी वात्सल्य किया गया। साथ ही एक मुहर तथा एक २ लड्डु लहान स्वरूप बाँटा गया। इस संघ में ९९०००) खर्च हुए। इसी समय जाति के लोगों ने आपको संघवी की पदवी प्रदान की। . सहा रूपाजी के पश्चात् क्रमशः भदाजी, इसरजी, कुवरोंजी, विरघोजी, लूभाजी, हरिजी, मेध. राजजी, उत्तमाजी, जीवराजजी, लूणांनी, बेनोजी, किसनोजी, कालू जी, हेमराजजी, राजसिंहजी, कपरचन्दनी (दत्तक), बोरडियाजी और दयालदासजी हुए। दयालदासजी के दो पुत्र हुए। बछराजजी और . सवाईसिंहजी। ___ इस परिवार के पुरुष बाबू सवाईसिंहजी बाबू रायसिंहजी (हरिसिंहजी) और वा० हिम्मतसिंहजी नामक अपने दो पुत्रों को लेकर सम्वत् १०४९ के माव सुदी ५ को अजीमगंज मुर्शिदाबाद में आकर बसे । भआपने अपना व्यापार आसाम प्रांत के अंतर्गत ग्वालपाड़ा नामक स्थान में प्रारंभ किया। आपका स्वर्गबास संवत् १८८३ में हो गया। ... काबू रायसिंहजी-आपका जन्म संवत् १८२९ के चैत्र माह में हुआ। अपने पिताजी की मृत्यु के पश्चात् आपने अपने कारोबार का संचालन किया। आपकी पुत्री श्रीमती गुलाबकुँवरी का विवाह बंगाल के प्रसिद जंगतश्ठ इन्द्रचन्दजी के साथ हुआ। आपका दूसरा नाम हरिसिंहजी भी था। आपके इसी नाम से कलकत्ते की मशहूर फर्म मेसर्स हरिसिंह निहालचन्द की स्थापना हुई। आपका स्वर्गवास सम्बत् १९.. में हुआ । भापके हुलासचन्दजी नामक पुत्र हुए। ___ बाबू हुलासचन्दजी-आपका जन्म संवत् १८५४ के करीब हुना। मेसर्स हरिसिंह निहालचंद नामक फर्म को आप ही मे स्थापित किया। आप बड़े बुद्धिमान, दूरदशी, व्यापारकुशल और धार्मिक प्रकृति के पुरुष थे। श्रावकारतों का आप पूर्ण रूप से पालन करते थे। दिल्ली के तत्कालीन अंतिम मुगल सम्राट् बहादुरशाह के दरबार में भी आपने कुछ समय तक कार किया था। आपके कार्य से प्रसन्न हो कर बादशाह ने आपको जिस तया राय की पदवी प्रदाय की थी। इस खिल्लास के साथ में बादशाह
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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