SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 458
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास होनहार नवयुवक हैं। इस समय आप एफ० ए० में अध्ययन कर रहे हैं। भाप अपने बैंकिंग व्यापार का संचालन करते हैं। सिंघवी कानमलजी भीबैंकिंग का कारोबार करते हैं। सिंघवी कस्तूरमलजी के बड़े भ्राता सिंघवी सोभागमलजी के पुत्र सिंघवी रंगरूपमलजी एवं सिंघवी जसवंतमलजी हैं । सिंघवी रंगरूपमलजी इस समय असिस्टेन्ट कस्टम सुपरिन्डेन्ट हैं। आपकी सर्विस ४२ साल की है। कई अच्छे २ आफिसरों से आपको सार्टीफिकेट मिले हैं । इनके पुत्र सिंघवी दशरथमलजी लखनऊ में एलएल० बी० की शिक्षा पा रहे हैं। सिंघवी सूरजमलजी जब कस्टम सुपरिन्टेंडेन्ट थे तब उनके पुत्र सुमेरमलजी असिस्टेंट सुपरिन्टेडेन्ट थे। जब सूरजमलजी गुजर गये तब सुमेरमलजी कस्टम सुपरिन्टेन्डेन्ट हुए। ___सिंघवी बहादुरमलजी ( सावंतमलजी के पुत्र) के पश्चात् बनेमलजी, इन्द्रचंदजी तथा सुमेरमलजी हुए। वर्तमान में सिंघवी सुमेरमलजी के पुत्र केवलमलजी ऑडिट ऑफिस में तथा पारसमलजी नागौर में सर्विस करते हैं। श्री जी० रघुनाथमल बैंकर्स हैदराबाद (दक्षिण) इस खानदान का मूल निवास स्थान सोजत ( जोधपुर-स्टेट ) है। आप ओसवाल श्वेताम्बर समाज के सिंघवी गौत्रीय सज्जन हैं। जोधपुर के सुप्रसिद्ध सिंघवी रायमलजी के वंश में होने से आपका खानदान "रायमलोत सिंघवी" के नाम से प्रसिद्ध है। इस खानदान में सिंघवी बच्छराजजी बहुत प्रतापी हुए। इनके लड़के कनीरामजी और पोते सदारामजी हुए। आप दोनों सजनों के पास मारवाड़ में हुकूमतें रही। श्रीयुत सदारामजी ने दो विवाह किये । प्रथम विवाह आलमचंदजी कंटालियावालों के यहाँ तथा द्वितीय सरूपचन्दजी कोठारी विराठियाँ वालों के यहाँ हुआ। आपके प्रथम विवाह से श्री कालूरामजी तथा द्वितीय से रूपचन्दजी, पूनमचन्दजी, जवाहरमलजी तथा जवानमलजी नामक पुत्र हुए। इनमें से श्रीयुत पूनमचंदजी के पुत्र श्रीयुत गणेशमलजी हुए। आपका जन्म सम्वत् १९३० में हुआ था ___ श्रीयुत पूनमचन्दजी सोजत से हैदराबाद गये और वहाँ जाकर आपने सबसे पहले नौकरी की। आपने थोड़े ही समय के पश्चात् 'पूनमचन्द गणेशमल' के नाम से दुकान खोली तथा इसके कुछ ही समय बाद गणेशमलजी को ढाई वर्ष की निपट नाबालिग अवस्था में छोड़कर आप स्वर्गवासी हुए। श्रीयुत गणेशमजी की नाबालिगी में आपकी मातेश्वरीजी मे बहुत होशियारी के साथ दुकान के काम को सम्हाला और व्यवसाय को पूर्ववत तरकी पर रखा। मगर दुर्देव से भापका मी संवत् १९५३ में स्वर्गवास हो गया।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy