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________________ मोतमाल जाति का इतिहास सम्वत् १८०६ में जब महाराजा मानसिंहजी ने मेड़ते पर अपना अधिकार कर लिया। उस समय सिंघवी फतहचन्दजी ने रागद सरदारों पर 'पेक्ष कही" लगाई। भाप संवत् १८०७ में मेड़ता के पास लड़ते हुए ज़ख्मी हुए। जब संवत् १४०८ में आपाद सुदी १ को महाराजाधिराज बख्तसिंहजी जोधपुर के स्वामी हुए, उस समब सिंघवी फतेचन्दजी ने राजतिलक किया और महाराजा साहब ने प्रसन्न होकर उन्हें दीवानगिरी का दुपट्टा, सिरोपाव, पालकी आदि सम्मान प्रदान किये। इतना ही नहीं इस समय राज्य की ओर से आपको कई गांव जागीरी में मिले। जिनकी वार्षिक बाप हजारों रुपयों की थी। संवत् 1610 तक आप इस पद पर रहे। सवत् 161 में फतहचन्दजी ने महाराज रामसिंहजी से जालौर, सोजत, और मेड़ता ले लिये और उन पर जोधपुर राज्य का अधिकार स्थापित कर दिया। इसी वर्ष भाप पुनः महाराज विजयसिंहजी के द्वारा मेढ़ते की लड़ाई में भेजे गये। इस लड़ाई में विजय प्राप्त कर आपने अपनी वीरता का परिचय दिया। संवत् १८१४ में आपने मेड़तियों को पूर्णरीति से परास्तकर उनसे जेतारण, सोजत भौर मेड़ता भावि परगने जीते और उन्हें जोधपुर राज्य में मिला लिये। संवत् १४२३ की आसोज सुदी ५ को सिंघवी फतहचन्दजी पुनः इस राज्य के दीवान बनाये गये, इन्होंने अपनी वीरता एवं युद्ध कौशल से मेड़तियों को परास्त कर मारवाड़ से भगा दिया। संवत् १८२१ में फतहचन्दजी के पुत्र ज्ञानमलजी को जोधपुर की हुकूमत दी गई। संवत १४२३ की चैत्र सुकी ५ को दरवार ने सिंघवी फतेचन्दजी को जीवन पर्यंत के लिये दीवान का पद दिया तथा मोतियों का कंठा, सिरोपाव, कड़ा, पालको तथा १४०००) वार्षिक की जागीरी प्रदान कर इनकी सेवाओं का सत्कार किया। फतहपाली संवत् १८३७ की आसोज सुदी १० को स्वर्गवासी हुए। सिंघवी ज्ञानमलजी-फतेहचन्दजी के स्वर्गवासी हो जाने के बाद भी संवत् १८४७ तक आपके पुत्र ज्ञानमलजी इस राज्य के दीवान का काम करते रहे। ज्ञानमलजी तक इस घराने को हजारों रुपये प्रतिवर्ष आय की जागीर थी, जिसकी सनदे आज तक विद्यमान है । ज्ञानमलजी के पुत्र बख्तावरमलजी को चैत्र सुदी " संवत् १८६६ में खानसमाई का पद मिला, जिसके साथ-साथ एक सिरोपाव भी दिया गया। भापके पुत्र कानमलजी हुए। मेड़ता परगने का गोल नामक गांव भापको जागीर में दिवा नया था। मापने जेतारण और नॉवों की हुकूमत भी की। सिंघवी ऋद्धमलजी-सिंघवी कानमलजी के सरदारमलजी तथा सिमासमी नामक दो पुत्र थे। सरदारमलजी के पुत्र पृथ्वीराजनी तथा ऋदमब्जी थे। श्रीमानकी मेडिकल डिपार्टमेंट में कुक थे। आपको अपने उत्तम कार्यों के लिये कई प्रमाण-पत्र लिके है। भाषा ईस्वी सन् १९३४
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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