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________________ सिंघवी स्वागिरी इन्हीं के नाम पर रही और इनके कामदार मेहसा कालूरामजी काम देखते रहे। फिर सम्वत् १९१९ में इनके पुत्र देवराजजी फौजबख्शी बनाए गये। इसके पहले आप शिव के हाकिम थे। भापको भी पैरों में सोना, हाथी और सिरोपाव का सम्मान मिला था । आपका स्वर्गवास सम्वत् १९६० में हुभा। आपके नाम पर सिंघवी मोहनराजजी दत्तक आये। परबतसर परगने कारघुनाथपुरा गाँव भापके पड़े में था। मोहनराजजी का स्वर्गवास सम्बत् १९७५ में हुआ। इनके पुत्र तखतराजजी अभी विद्यमान है। अपने पूर्वजों की सेवाओं के उपलक्ष्य में आपको रियासत से १००) मासिक मिलता है। सिंघवी रायमलोत परिवार, जोधपुर हम अपरावतला चुके हैं कि सिंधी शोभाचन्दजी के सुखमलजी, रायमलजी, रिदमजी और प्रतापमलजी नामक चार पुत्र हुए। इनमें दूसरे पुत्र रायमलजी से रायमलोत नामक सांप निकली। इसी रावमलनेत शाखा का संक्षिस परिचय दिया जाता है। - सिंघी रायमलजी-भाप बड़े प्रतापशाली पुरुष हुए। सम्वत् 10 में आपको राम की महान सेवाओं के उपलक्ष्य में २०,०००) की रेख के १६ गांव जागीर में मिले। सम्बत् १६४१ में आपने बालेर में बिहारी मुसलमानों से युद्ध किया और उन्हें परास्त कर जालोर को जोधपुर राज्य के भाधीन किया। सिंघी रायमलजी महाराजा गजसिंहजी के समय में जोधपुर की दिवानगी के प्रतिष्ठित पद पर थे। आपके पुत्र सिंघवी जीतमलजी हुए । सिंघवी जतिमलजी-आप बड़े वीर प्रकृति के पुरुष थे। सम्वत् १६८१ में आप जोधपुर राज्य प्रधान सेनापति बनाये गये और उसके दूसरे ही साल एक युद्ध में वीरता पूर्वक लड़ते हुए काम आये । आपके एक पुत्र थे, जिनका नाम आनन्दमरूजी था। भानन्दमलजी के दो पुत्र थे, जिनका नाम हररूपमलजी, और सरूपमलजी था। __सिंघवी सरूपमनजी सम्वत् १७४१ में जब महाराजा बखतसिंहमी नागौर के राज्यसिंहासन पर बैठे और उन्होंने राजाधिराज की उपाधि धारण की, उस समय सिंघवी सरूपमलजी वहाँ के दीवान बनाये गये थे। आपके फतहमलजी, सांवतमलजी तथा बुधमलजी नामक तीन पुत्र हुए। सिंघवी फतहचन्दजी-भाप भी अपने पिताजी के पश्चात् सम्वत् १७९३ से १८०७ तक नागौर के दिवान रहे। भापको तत्कालीन नागौर नरेश ने खुश होकर पालकी, सिरोपाव, कड़ा, मोतियों की की आदि प्रदान कर भापका सम्मान किया। आपके छोटे भाई सांवतरामजी भी नागौर के दिवान रहे थे। ५२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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