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________________ (२) पछाणजी -- इनसे बागमलोत हुए जिनके घर पर्वतसर में हैं। (३) पारसजी इनसे सुखमलोत, रायमलोत, रिदमकोत, परतापममेत, जोरावरमलोत, हिन्दूमलोत, मूलचंदोत, धनरूपमलोत तथा हरचंदोत हुए। इनके परिवार जोधपुर, सोजत, नागोर, मेड़ता, पीपाड़, रेणा, लाडनूं, डीडवाना, पाली, सिरियारी, चाणोद, कालू, आदि स्थानों में है । गोपीनाथजी - इनसे भागमलोत हुए । यह परिवार गुजरात में है । मोडणजी - इनका परिवार कुवेरा में है । ( ४ ) (५) सिंघवी भींवराजोत सिंघवी ++ ऊपर हम सिंघवियों की पाँचों खांपों का संक्षिप्त विवेचन कर चुके हैं। वैसे तो जोधपुर के इतिहास में इन पांचों ही शास्त्राओं के महापुरुषों ने बड़े २ महत्वपूर्ण काव्यं करके दिखलाये हैं और अपनी बाम को हथेली पर रखकर राज्य की रक्षा और उन्नति में सहयोग दिया है फिर भी जोधपुर के राजनैतिक इतिहास में भींवराजोत झाला का नाम सबसे अधिक प्रखर प्रताप के चमकता हुआ दिखलाई देता है । इतिहास खुले तौर से इस बात की साक्षी दे रहा है कि महाराज मानसिंहजी के समय में जबकि जोधपुर का राजसिंहासन भयंकर संकट ग्रस्त हो गया था और उसका अस्तित्व तक खतरे में जा गिरा था उस समय जिन वीरों ने अपनी भुजाओं के बल पर उस गिरते हुए वैभव को रोका था उसमें भींवराजोत शाखा के सिंघवी इन्द्रराज सबसे प्रधान थे । जोधपुर के इतिहास में सिंघवी इन्द्रराज का नाम एक तेजपूर्ण नक्षत्र के तुल्य चमक रहा है। स्वयं महाराजा मानसिंहजी ने स्पष्ट शब्दों में सिंघवी इन्द्रराज को लिखा था कि "आजसू थारो दियोड़ो राज है | म्हारे राठोडों रो वंश रेसी ने श्री राज करसी उत्रो थारा घर सुं एहसान मन्द रेसी” *# इसी प्रकार इनके भाई गुलराजजी इनके पुत्र फतेराजजी आदि व्यक्तियों मे भी जोधपुर के राज नैतिक इतिहास में अपना विशेष स्थान प्राप्त किया था । नीचे हम इसी गौरवशाली वंश का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयत्न करते हैं । सिंघवी भीवराजजी इस शाखा का प्रारम्भ सिंघवी भीवराजजी से होता है। सिंघवी भींवराजजी अपने समय के बड़े प्रसिद्ध मुत्सद्दी थे । जोधपुर पर आने वाली कई राजनैतिक विपत्तियों का मुकाबिला आपने बड़ी बहापूरे रुक्के की नकल ओसवालों के राजनैतिक महत्व नामक अध्याय में पृष्ठ ६० पर देखिए । ७९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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