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________________ सिंपकी ओसवाल जाति के इतिहास में सिंघवी वंश बढ़ा प्रतापी और कीर्तिमान हुआ। सिंघवी वंश के मरपुङ्गवों के गौरवशाली कार्यों से राजस्थान का इतिहास प्रकाशमान हो रहा है। इन्होंने अपने युग में राजस्थान की महान् सेवाएँ की और उन्हें अनेक दुर्भय आपत्तियों से बचाया । राजनीतिज्ञता, रणकुशलता और स्वामिभक्ति के उच्च आदर्श को रखते हुए इन्होंने एक समय में मारवाद राज्य का उद्धार किया । अब हम इस गौरवशाली वंश के इतिहास पर थोड़ा सा ऐतिहासिक प्रकाश डालना चाहते हैं । सिंघवी गौत्र की स्थापना जिस प्रकार ओसवाल जाति के भन्य गौत्रों का इतिहास अनेक चमत्कारिक दन्त कथाओं से आवृत है, ठीक वही बात सिंघवी गौत्र की उत्पत्ति के इतिहास पर भी लागू होती है। सिंघवियों की त्यातों में, इस गौत्र की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, उसका आशय यह है-"मनवाणा बोहरा जाति में देवजी नामक एक प्रतापवान पुरुष हुए । उनके पुत्र को सांप ने काटा और एक जैनमुनि ने उसे जीवित कर दिया। इस समय से इनका इष्टदेव पुण्डरिक नागदेव हुआ। लाभग २३ पीढ़ी तक तो वे नन· वाणा बोहरा ही रहे। इसके बाद सम्वत् २॥ में उक्त बोहरा वंशीय आसानन्दजी के पुत्र विजयानन्दजी ने सुप्रख्यात् जैनाचार्य श्री जिनवल्लभसूरि के उपदेश से जैन धर्म को स्वीकार किया। इन विजयानन्दजी के कुछ पीदियों के बाद श्रीधरजी हुए। इनके पुत्र सोनपालजी ने सम्वत् १४४४ में शत्रुक्षय का बड़ा भारी संघ निकाला, जिससे ये सिंघवी कहलाये।" यह तो हुई सिंधियों की उत्पत्ति की बात। इसके भागे चल कर सोनपासनी के सिंहाजी, भगाजी, रागोजो, जसाजी, सदाजी तथा जोगाजी नामक छः पुत्र हुए। इनमें से सिंहाजी जसाजी तथा रागोजी का परिवार जोधपुर में तथा बागोजी, सदाजी, और जोगाजी का परिवार गुजरात में है। उपरोक्त : भाइयों में से बड़े माता सिंहाजी के चापसीजी, पारसजी, गोपीनाथजी, मोंडणजी तथा पछाणजी नामक ५ पुत्र हुए, इन पाँचों भाइयों से सिंघवियों की मीचे लिखी सा निकली(1) चापसीजी-इनसे भीवराजोत, धनराजोत, गादमलोत, महादसोत शाखाएँ निकली इनके घर जोधपुर, चंडावळ तथा खेरवामें हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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