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________________ aer आकर बस गया। इस परिवार में सेठ मदूमलजी हुए। आपकी आरंभिक स्थिति साधारण थी। आप ने अपनी योग्यता से पैसा कमाया और समाज में अपनी प्रतिष्ठा भी स्थापित की। आपका संवत् १९६७ में अंतकाल हुआ। आपके सेठ ब्रजलालजी नामक पुत्र हुए। सेठ ब्रजलालजी का जन्म संवत् १९५६ में हुआ। आप बाड़मेर के व्यापारिक समाज में मातवर व्यक्ति हैं। आपकी यहाँ पर तीन चार दुकाने हैं और मालानी के जागीरदारों के साथ आपका लेन देन का सम्बन्ध है । आपके पुत्र भगवानदासजी व्यापारिक कामों में भाग लेते रहते हैं। इस परिवार की तरफ से बाड़मेर में एक धर्मशाला भी बनी हुई है। - मेहता गोपालसिंहजी का खानदान, उदयपुर मेहता भगवंतसिंहजी के पिता किशनगढ़ नामक स्थान पर निवास करते थे। वहीं से आप यहाँ उदयपुर आये । यहाँ आकर आपने सरकार में सर्विस की। आपके कार्यों से प्रसन्न होकर महाराणा साहब ने आपको मगरा जिले में 'ढाकहडा' नामक एक ग्राम जागीर स्वरूप बक्षा । आप यहाँ पर न्याय के कारखाने ( सिविल कोर्ट ) के हाकिम रहे। आपके वलवन्तसिंहजी नामक एक पुत्र हुए । आप भी प्रतिभाशाली व्यक्ति थे । आप मगरा जिला और खेरवाड़ा आदि स्थानों पर हाकिम रहे। आपके मेहता मनोहरसिंहजी नामक एक पुत्र हुए। आपका जन्म संवत १९१९ में हुआ । बचपन से ही आप बड़े बुद्धिमान और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे । एक बार का प्रसंग है जब कि आप स्कूल में विद्याध्ययन करते थे, महाराणा सज्जनसिंहजी स्कूल का निरीक्षण करने के लिये पधारे । आपका ध्यान तुरंत मेहता साहब की ओर आकृष्ट हो गया। और आपने उसी दिन से मेहताजी को सेटलमेंट आफिसर के पास काम सीखने के लिये भेज दिया । जब आप केवल १६ वर्ष के थे आपको राजनगर की हुकुमत बक्षी गई थी। तब से आप बराबर राजनगर, सादड़ी, जहाजपुर, चित्तौड़ और गिरबा में हाकिमी के साथ साथ आपको वहाँ के खजाने का भी काम मिला। इसके पश्चात् आप स्पेशल ब्यूटी में बेगूं भेजे गये । वहाँ जाकर आपने बागी रिआया को शांत किया। इसी प्रकार बसीसी में भी आपने जाकर शांति स्थापित की । आप इतने लोकप्रिय होगये थे कि जब शाहपुरा-स्टेट के काछोला नामक परगने में प्रजा बागी होगई थी उस समय शाहपुरा दरबार मे ए० जी० जी के मार्फत आपको वहाँ शांति स्थापनार्थ मांगा था, वहाँ भी आपने शांति स्थापित की । हाकिम के पद पर रहे । गिरवा में मेहता मनोहरसिंहजी के कोई पुत्र न होने से पहले तो किशनगढ़ के मेहता चन्द्रसिंहजी के पुत्र सोहनसिंहजी दत्तक लिये गये, मगर आपका स्वर्गवास चार पाँच वर्षों ही में, जब कि आप बी० ए० में पढ़ 27
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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