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________________ ओसवाल जाति का इतिहास आपकी प्रतिभा. सर्वतोमुखी थी। आपने न केवल राजनैतिक क्षेत्र में ही वरन् सामाजिक एवम् धार्मिक क्षेत्र में भी बहुत कार्य किये थे। आपने सम्राट अकबर को जैनधर्म के तत्वों को समझाने के लिए जैनाचर्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजी को खम्भात से बुला कर सम्राट् से उनका परिचय कराया और उनका महत्वपूर्ण व्याख्यान करवाया। अकबर पर उनका अच्छा प्रभाव पड़ा तथा अकबर ने उनके भादेशानुसार अहिंसा के तत्व को समझ कर कई पर्व के पवित्र दिनों में हिंसा न करने के आदेश सारे साम्राज्य में भेजे । -काश्मीर के युद्ध में सम्राट अकबर अपनी धर्म जिज्ञासा के लिये महाराज के शिष्य मानसिंहजी को साथ ले गया था । अकबर का जैनधर्म पर बहुत प्रेम हो गया था। कर्मचन्दजी की दान वीरता भी बहुत बदी-बड़ी थी मापने एक समय श्रीजिनचन्द्रसरि महाराज के आगमन की बधाई सुनाने वाले याचकों के बहुच ब्रम्प प्रदान किया था इसका वर्णन करते हुए मल्ल नामक कवि ने इस प्रकार लिखा है: नव हाथी दीने नरेश, मद सों मतवाले । नवे गाँव बगसीस, लोक आवे हित हाले ॥ परा की सौ पांच सुतो, जग सगलो जाणे । सवा करोड़ को दान, मल्ल कवि सत्य बखाने ॥ कोई रावत राणा न करि सके, संग्राम नंदन तें किया । श्री युगप्रधान के नाम सुंज, कर्मचंद इतना दिया ॥ इसके अतिरिक्त जब सम्राट् ने कर्मचन्दजी के कहने से जिनसिंहसूरि को आचार्य की पदवी मंदान को तब इसके महोत्सव में कर्मचन्दजी ने सवा करोड़ रुपये खर्च किये थे। (प्राचीन जैन लेख संग्रह पृष्ठ ३५) मंत्री कर्मचन्दजी ने सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत काम किया था। आपने पुराने कायदों का संशोधन किया तथा जाति को उन्नति के लिये कई नये कानून बनाए । वर्तमान समय में जो ४ टके की लाहण बांटी जाती है वह उन्हीं के द्वारा प्रचारित की गई थी। संवत् १६३५ के दुर्भिक्ष में आपने हजारों लोगों का प्रतिपालन किया तथा अपने साधर्मी भाइयों को १२ माह तक अन्न-वस्त्रादि प्रदान किया था तथा वर्षा होने पर सबको मार्ग म्यय एवम् खेती भादि करने के लिये कुछ द्रव्य देकर अपने २ स्थान पर पहुचा दिया था। तुर्रमखां को सिरोही की लूट में भिन्न र धातुओं की जो एक हजार प्रतिमाएँ मिली थीं, उससे उन्हें छीनकर मापने श्रीचिंतामणि स्वामी के मंदिर के तलघर में रखवा दी जो अब तक मौजूद हैं। कर्मचन्दजी के बनवाये हुए एक विशाल उपाश्रय में एक बार महाराज जिनचन्द्रसूरि ने अपना १२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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